विनय बिहारी सिंह
परमहंस योगानंद जी ने गीता की व्याख्या- गाड टाक्स विथ अर्जुन- में लिखा है कि जिन भक्तों का जीवन ही प्रार्थना का पर्याय बन जाता है, वे धन्य हैं। ऐसे ही भक्त भगवान से बातचीत करते हैं। उनके जीवन का केंद्र ही भगवान होते हैं। भले ही वे सांसारिक कर्तव्यों का पालन कर रहे हों, लेकिन उनका दिल और दिमाग भगवान की पुकार कर रहा होता है- मेरे प्रभु, मेरे प्रभु......। यही वह तरीका है जब हम संसार के दुखों से बाहर निकल सकते हैं। वरना सांसारिक चक्की में पिसते रहेंगे। रोज उठना, मशीन की तरह काम करना, गप हांकना, बीच बीच में कहीं घूम फिर लेना, खाना- पीना, सोना और बूढ़े होकर मर जाना। क्या इसीलिए हमें मनुष्य जीवन मिला है? परमहंस जी ने कहा है- यह संसार हमारा घर नहीं है। इसे छोड़ कर हमें चले जाना है। इसलिए रोज कुछ न कुछ अच्छा काम करने की कोशिश करनी चाहिए। अगर आप बहुत व्यस्त हैं तो एक मिनट के लिए रुकिए। अपनी आंखें बंद कीजिए और प्रभु को पुकार कर कहिए- मेरे प्रभु, आपके लिए मैं तड़प रहा हूं। मेरे प्रिय, आप ही मेरे सब कुछ हैं। फिर आंखे खोलिए और जो काम आप कर रहे हों, उसे फिर करने लगिए। इसमें कोई मेहनत नहीं है। बस क्षण भर के लिए रुके और भगवान को पुकार लिया। भगवान तो सर्वव्यापी हैं ही। लेकिन वे हमारे हृदय की तड़पन समझते हैं। एक बार आप दिल से- मेरे प्रभु, मेरे प्रभु कहते हैं तो वे आपको अपनी छाती से लगा लेते हैं और कहते हैं- हां, मेरे बच्चे। मैं तुम्हारे पास ही हूं। यह प्रेम संबंध जितना प्रगाढ़ होता है, हम उतने ही सुखी होते हैं।
1 comment:
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (31-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
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