विनय बिहारी सिंह
संत रैदास ने कहा कि जानवर भी खाता-पीता, सोता और बच्चे पैदा करता है। मनुष्य भी वही काम करता है। लेकिन एक अंतर है।
मनुष्य के पास विवेक है। वह जब आसमान देखता है तो उसे सृष्टि की अनंतता का आभास होता है। जब वह पर्वत देखता है तो अपनी लघुता का आभास होता है। प्रकृति का सौंदर्य देखने से, सूर्योदय, सूर्यास्त देखने से ईश्वरी घटनाओं का आभास होता है। लेकिन यह आभास उन्हीं को होता है जो भीतर तक इन चीजों के रहस्य को समझते हैं। लेकिन जो लोग प्रकृति की इन घटनाओं को समझते हैं कि यह तो होना ही है, इसमें नई बात क्या है तो फिर वे सूक्ष्म स्तर पर नहीं जा पाते। मनुष्य के पास दिमाग है, विवेक बुद्धि है। इसी के कारण वह अन्य जीवों से श्रेष्ठ है। मनुष्य के भीतर अपने बाल- बच्चों के लिए प्रेम है तो पशु- पक्षी के भीतर भी अपने बच्चों के प्रति प्रेम है। लेकिन मनुष्य का प्रेम तब विस्तारित हो जाता है, जब वह अपने अलावा अन्य की भी सेवा करता है। यह विस्तार ही उसे श्रेष्ठ मनुष्य बनाता है। संत रैदास कहते थे कि श्रेष्ठ मनुष्य वही है जो भगवान से प्रेम करता है।
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