Thursday, March 24, 2011

यह शरीर तो यहीं रह जाएगा



विनय बिहारी सिंह

परमहंस योगानंद जी ने कहा है कि मनुष्य सिर्फ शरीर नहीं है। यह शरीर तो यहीं रह जाएगा। हम तो शुद्ध आत्मा हैं। रामचरितमानस में भी गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है- ईश्वर अंश जीव अविनासी।। यानी जीव ईश्वर का ही अंश है। लेकिन अगर हम दिन- रात शरीर और इससे जुड़ी बातों के बारे में ही सोचते हैं तो हमारी सोच सीमित हो जाती है। यह अद्भुत है। परमहंस योगानंद जी ने कहा है कि सामान्य सांसारिक व्यक्ति के लिए ईश्वर अदृश्य ताकत है। उसके लिए भगवान ओझल हैं। लेकिन जो भक्त हैं, जो योगी हैं, उनके लिए भगवान सदा उपस्थित रहते हैं। वे ईश्वर को महसूस करते हैं। उच्च कोटि के साधक ईश्वर को देखते भी हैं। लेकिन जिनका मन चंचल है (संदर्भ- गीता) वे ईश्वर को कोई दूर की चीज समझते हैं। वे यह मानते हैं कि ईश्वर उनके लिए नहीं हैं। सिर्फ साधु- संतों के लिए हैं। जबकि सच्चाई यह है कि ईश्वर सबके लिए हैं। कहा भी गया है- हरि को भजे, सो हरि के होई।। जो ईश्वर का नाम प्रेम से लेता है, वह ईश्वर को प्रिय है। मां पहली बार जब अपने बच्चे के मुंह से- मां शब्द सुनती है तो उसका मन आह्लादित हो जाता है। ईश्वर भी जब अपने बच्चों के मुंह से अपना नाम सुनते हैं तो आह्लादित होते हैं। उन्हें इंतजार रहता है कि कोई बच्चा उन्हें पुकारे। वे उसकी ओर दौड़ पड़ें। ऐसे सुलभ संबंध होने पर भी ईश्वर को हम सर्वोच्च प्रेम नहीं करते तो इसमें किसका दोष है? परमहंस योगानंद जी की उच्च कोटि की सिद्ध शिष्या दया माता कहती थीं कि कोई कैसे ईश्वर को मन प्राण से चाहे बिना रह सकता है? वही तो सब कुछ हैं। वे दिन रात मन ही मन ईश्वर का जप किया करती थीं।
ऋषियों ने भी कहा है- जो दिन- रात ईश्वर को प्रेम करता है, उसी का मनुष्य जन्म सार्थक है।

1 comment:

vandana gupta said...

सत्य वचन्……………ये शरीर यही तो रहेगा ही और यहीं पंचतत्व मे विलीन हो जायेगा इसका अस्तित्व भी उसी मे समा जाता है।