Saturday, March 26, 2011

वे विलक्षण साधक हैं, हिमालय जा रहे हैं


विनय बिहारी सिंह

कल एक साधक ने कहा- पवित्र ऊंकार ध्वनि की महानता शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती। ऊं ईश्वरवाचक शब्द है। उसके संपर्क में रहने से शरीर, मन और आत्मा पवित्र हो जाती है। मैंने पूछा- आप ऊं के संपर्क में कैसे रहते हैं? उन्होंने कहा- आप जितनी गहरी शांति में रहेंगे, आपको ऊं ध्वनि सुनाई पड़ेगी। अगर यह ध्वनि सुनाई नहीं पड़ती तो आप गहरी शांति में जा कर मन ही मन ऊं का जाप कीजिए। ऊं के जाप से आपकी शांति बढ़ती चली जाती है। लेकिन हां, शांत होना बहुत जरूरी है। शांत होने के लिए यह जरूरी है कि सारी चिंताएं, सारे तनाव आप भगवान को सौंप दीजिए। वही उसकी चिंता करें। आप सिर्फ भगवान की गोद में बैठ कर आनंद मनाइए और ऊं के साथ रहिए। ये साधक बहुत पुराने हैं और दिन- रात ईश्वर का ही चिंतन करते हैं। इनसे जब भी मुलाकात होती है, वे ईश्वरीय बातें ही करते हैं। एक दिन उन्होंने कहा- रात को राम, राम, राम का जाप किया। कितना आनंद है इस दो अक्षर में। सचमुच बहुत फायदा होता है राम, राम के जाप से। उनसे जब भी मुलाकात होती है, वे अपना कोई न कोई अद्भुत अनुभव सुनाते हैं। इन दिनों उनसे बहुत कम मुलाकात होती है। लेकिन कल की मुलाकात इसलिए भी विशेष थी कि ईश्वर की बातें करते हुए उनकी आंखों से आंसू निकल आते थे। इन दिनों वे ईश्वर के अलावा कुछ सोच नहीं पाते हैं। ऐसा विलक्षण प्रेम कम लोगों में देखने को मिलता है। उन्होंने ईश्वर भक्ति में रमे रहने के कारण शादी नहीं की। अब वे हमेशा के लिए हिमालय क्षेत्र में जा रहे हैं। केदारनाथ में कहीं रहने की व्यवस्था की है। उनका कहना है कि अब लौट कर आने का विचार नहीं है। वहीं दो रोटी का जुगाड़ हो गया है। साधना कीजिए, ईश्वर चर्चा कीजिए और ईश्वरीय आनंद मनाइए। उन्होंने कहा- जैसे आदमी स्वाद बदलने के लिए कभी कोई व्यंजन तो कभी कोई व्यंजन खाता है। ठीक उसी तरह ईश्वर भक्ति एक ही तरह से नहीं की जाती। इसमें भी स्वाद बदलने का मौका है। कभी जप कीजिए। कभी ध्यान कीजिए तो कभी भजन गाइए। कभी चुपचाप भगवान का फोटो निहारिए। कभी शरीर में हवा लगे तो मानिए कि यह भगवान ही हैं जो हवा बन कर आपके शरीर को स्पर्श कर रहे हैं। आज रात वे ट्रेन पकड़ कर हमेशा के लिए हिमालय क्षेत्र में जा रहे हैं। भगवान को ऐसे भक्त अत्यंत प्रिय होते हैं जो दिन- रात, सोते- जागते, उठते- बैठते, काम करते और सोचते हुए उन्हीं को हृदय में रखते हैं।

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