Tuesday, March 22, 2011

मनुष्य का जन्म होता है ईश्वर से मिलन के लिए



विनय बिहारी सिंह

ऋषियों ने कहा है- मनुष्य योनि में जन्म इसलिए होता है ताकि हम अपने मेरुदंड में स्थित छह चक्रों को खोल सकें। जब ये चक्र सक्रिय हो जाते हैं तो खासतौर से ऊपर वाले तीन चक्र तो हमें ईश्वर का बोध होने लगता है। ये चक्र कैसे खुलेंगे? ऋषियों ने कहा है- अष्टांग योग से। यह क्या है? पातंजलि योग सूत्र में अष्टांग योग की व्याख्या है। पिछले दिनों मैंने गीता प्रेस के बुक स्टाल पर पातंजलि योग सूत्र देखा। गीता प्रेस ने इसे और अन्य महत्वपूर्ण पुस्तकों को प्रकाशित कर असंख्य लोगों का उपकार किया है। अष्टांग योग में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि है। इसे समझना बहुत जरूरी है।
ऋषियों ने कहा है- जब तक हम ईश्वर से प्रेम नहीं करते, उनकी भक्ति नहीं करते, हमारा कल्याण नहीं होगा। ईश्वर से प्रेम हमारे लिए अत्यंत आवश्यक है। परमहंस योगानंद जी ने कहा है- ईश्वर के पास तो सब कुछ है। उनके पास क्या नहीं है? बस एक चीज नहीं है- हमारा प्यार। वे हमारा प्यार पाने के लिए उत्सुक हैं। लेकिन वे तभी प्रसन्न होंगे जब हम यह प्रेम, हम उन्हें स्वेच्छा से देंगे। वे हमें प्रेम करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते। इसीलिए उन्होंने हमें फ्री विल या स्वतंत्र इच्छा शक्ति दी है। अगर हम अपनी बुरी आदतों के गुलाम हो जाएंगे या अनाप- शनाप चिंतने के शिकार हो जाएंगे तो फिर मन एकाग्रचित्त नहीं होगा। हमें अपने मन का फोकस ईश्वर पर रखना चाहिए। वे ठीक हमारे हृदय में बैठे हैं। लेकिन हम अपने चंचल दिमाग के कारण नहीं महसूस कर पाते। इसे ही महसूस करने के लिए योग का सहारा लेना होता है। दिल से ईश्वर का नाम लेते ही वे हमसे कनेक्ट हो जाते हैं। हमसे जुड़ जाते हैं। चाहे जप करें या पूजा। या मन ही मन प्रार्थना करें, ईश्वर हमारी हर बात सुनते हैं। आखिर वे सर्वव्यापी, सर्वग्याता और सर्वशक्तिमान हैं।

2 comments:

Anonymous said...

great truth

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
जानिए धर्म की क्रान्तिकारी व्याख्या।