विनय बिहारी सिंह
इस बार महाशिवरात्रि में योगदा मठ की सुंदर सी छत पर शिव मंदिर के सामने हो रहे भजन को सुन कर मन आनंद विभोर हो गया। सारे भजन भगवान शिव की अनंतता को व्याख्यायित करने वाले थे। जैसे- शिव, शिव, महादेव......२- हे अनादि हे अनंत.... मेरे प्राण ३- करुणासागर, शिव शंभो..... आदि। इन भजनों में बताया गया है कि भगवान शिव का आकार तो है, लेकिन वास्तव में वे निराकार और अनंत हैं। भक्तों पर बहुत ही कृपालु हैं। उनकी गहराई कोई जान नहीं पाया। लेकिन भक्त उनकी गहराई में उतर जाते हैं, भले ही उनकी थाह न ले पाएं, लेकिन उनसे रहा नहीं जाता। वे जानते हैं कि भगवान शिव अनंत हैं। उनकी हैसियत उनकी थाह पाने की नहीं है। लेकिन अपने प्रिय भगवान से दूर भी वे कैसे रह सकते हैं? हे शिव, हे शंभो कहते हुए वे शिवजी की भक्ति में डूब जाते हैं। वे कहते हैं- आप अनंत हैं, लेकिन मैं भी तो आपका ही हूं। मुझे शरण में लीजिए और आप स्वयं को जितना प्रकट करना चाहें कीजिए। लेकिन दर्शन दीजिए। हम आपके लिए व्याकुल हैं भगवान। आप ही हमारे आदि स्रोत हैं। अपने स्रोत से कौन नहीं मिलना चाहेगा। असली आनंद तो अपने स्रोत से मिलने में ही है। हम दुनिया के लोग सोचते हैं कि अच्छा खाने से सुख मिलेगा, अच्छा पहनने से सुख मिलेगा। किसी से मुलाकात करने पर सुख मिलेगा। पर्यटन से सुख मिलेगा। यह करने से सुख मिलेगा, वह करने से सुख मिलेगा। लेकिन सुख कहीं नहीं मिलता। सुख मिलता है तो बस एक जगह ही- सिर्फ और सिर्फ भगवान के पास।
वही हमारे अनंत सुखों के स्रोत हैं। वे यह सुख हमें देने के लिए तैयार हैं। लेकिन ऐसे अनेक लोग हैं जो भगवान का नाम भी पुकारने से परहेज करते हैं। उनका कहना है कि वे बहुत व्यस्त हैं। क्या आश्चर्य है? भोजन के लिए तो समय निकाल लेते हैं, लेकिन भगवान के भजन, स्मरण, जप या पूजा आदि के लिए उनके पास समय नहीं है। हां, गप हांकने के लिए समय निकाल लेते हैं।
1 comment:
ज्ञान के लिए चाहिए साधना और संयम और उसकी प्राप्ति के लिए चाहिए यम नियम.
जोकि यहाँ कम लोगों में है और नारियों में भी हरेक में नहीं है . होलिका और पुराणों के बारे में ऋषि दयानंद के विचार आज मार्गदर्शक हैं परन्तु हठ और दुराग्रह के कारण लोग नहीं मानते वरना हरे तो छोडो सूखे लक्कड़ कंडे भी कहीं न जलाये जा रहे होते , फ़ालतू की आग जलाकर वैश्विक ताप में वृद्धि क्यों की जा रही है ?
इस पर भी विचार आवश्यक है .
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