विनय बिहारी सिंह
रामकृष्ण परमहंस अपने शिष्यों से बड़े प्रेम से ध्यान करने को कहते थे। एक दिन उन्होंने अपने शिष्य नरेंद्र (स्वामी विवेकानंद) से कहा- जाओ पंचवटी (प्रसिद्ध काली मंदिर परिसर में साधना का एक स्थान) में जाकर ध्यान करो। नरेंद्र ध्यान करने चले गए। तीन घंटे बाद वे अपने गुरु के पास लौटे तो रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें प्रेम से अपने पास बिठाया और कहा- जानते हो ध्यान कैसे करना चाहिए? नरेंद्र ने अपने गुरु की तरफ देखा। गुरु बोले- जैसे तेल की धार। ठीक वैसा ही ध्यान। जैसे तेल की धार बिना किसी बाधा या रुकावट के गिरती रहती है। उसी तरह साधक को निरंतर भगवान में ध्यान लगाए रखना चाहिए। यह प्रसंग रामकृष्ण वचनामृत में है जिसके लेखक हैं श्री म। यानी महेंद्रनाथ गुप्त। महेंद्रनाथ गुप्त अपना संक्षिप्त नाम श्री म लिखते थे। श्री म भी रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे। इस पुस्तक का एक और प्रसंग याद आ रहा है। एक जगह उन्होंने कहा है- ईश्वर एक हैं। उनके नाम अलग- अलग हैं। जैसे पानी को कोई जल, तो कोई वाटर तो कोई एक्वा कहता है, ठीक उसी तरह कोई भगवान को गॉड, तो कोई prabhu तो कोई अन्य नाम से पुकारता है। इसी तरह शिव, काली, दुर्गा, कृष्ण, राम आदि एक ही हैं। बस इनके नाम अलग- अलग हैं। रामकृष्ण परमहंस के गुरु तोतापुरी जी कहते थे- रामकृष्ण परमहंस जैसा व्यक्ति मैंने नहीं देखा है। जो बात लोग वर्षों में सीखते हैं, ये तीन दिन मे सीख गए। इसी वजह से तोतापुरी जी जो एक जगह पर १२ घंटे से ज्यादा नहीं ठहरते थे, रामकृष्ण परमहंस के पास एक साल तक ठहर गए थे। इसी कोलकाता स्थित दक्षिणेश्वर के काली मंदिर में वे साल भर तक रहे और अपने शिष्य रामकृष्ण परमहंस की अद्भुत लीलाओं को देखा। रामकृष्ण परमहंस की तंत्र की गुरु थीं- साध्वी ब्राह्मणी। तोतापुरी जी वेदांत के गुरु थे और साध्वी ब्राह्मणी तंत्र विद्या की गुरु थीं।
1 comment:
बहुत सुन्दर आलेख्।
Post a Comment