Tuesday, March 1, 2011

दिव्य आनंद के प्रतीक भगवान शिव




विनय बिहारी सिंह


महाशिवरात्रि है भगवान शिव की विशेष रात्रि। कई साधक महाशिवरात्रि को सोते नहीं हैं। वे रुद्राक्ष की माला लेकर ओम नमःशिवाय का जाप करते हैं या माला एक तरफ रख कर गहरे ध्यान में लीन हो जाते हैं। हम सबने भगवान शिव का चित्र देखा है। उनकी थोड़ी सी खुली आंखों की पुतलियां ऊपर की तरफ उठी हुईं, होठों पर मनोहारी मुस्कान। वे समाधि में बैठे हैं। गले में सर्प सामने की तरफ फन निकाले हुए है (यानी भगवान की कुंडलिनी पूर्ण रूप से जाग्रत है)। वे मृगचाला पहने हुए हैं और पद्मासन में बैठे हुए हैं। आप चाहे जितनी देर उनकी इस छवि को निहारें, आप अपने भीतर शांति महसूस करेंगे। आइए अब शिवलिंग की चर्चा करें। शिवलिंग का अर्थ है- अनंत प्रकाश, अनंत शक्ति और अनंत व्यापकता। शिवलिंग भी कई तरह के होते हैं- कुछ गोल, कुछ लंबाई के आकार के, कुछ लाल, कुछ श्वेत, कुछ श्याम...... नाना रंग। इसका अर्थ है कि भगवान सारे रंगों और रूपों में हैं। भगवान शिव का लिंग मूलतः अनंतता का प्रतीक है। कहा गया है कि भगवान शिव अपने भक्तों के दुख सबसे पहले नष्ट करते हैं। अगर किसी को मृत्यु भय है तो वह महामृत्युंजय का जप करता है। महामृत्युंजय जप भगवान शिव की स्तुति ही है। शिव जी किसी भी प्रकार के भय, रोग और शोक को हर लेते हैं। इसीलिए उनका नाम हर है। कहा जाता है- हर, हर महादेव। शिव जी अनंत शांति, अनंत आनंद और अनंत बुद्धि के दाता हैं। समुद्र मंथन में जब विष निकला तो उसे भगवान शिव ने ही लोक कल्याण के लिए पी लिया और अपने गले में रख लिया। वे संसार के किसी भी कष्ट का हरण करने वाले महादेव हैं। अपने भक्तों को नित नवीन आनंद देते हैं। उनकी पूजा में भी कोई दिक्कत नहीं है। बेलपत्र, फूल और जल चढ़ाइए और ओम नमः शिवाय का जाप कीजिए। अगर आपके पास बेल का फल है तो सोने में सुगंध। उसे भगवान शिव को चढ़ा दीजिए। भगवान शिव को धतूरे का फल और फूल भी चढ़ाया जाता है। लेकिन अगर आपके लिए यह सब पाना आसान नहीं है तो बस बेलपत्र, कुछ सुंदर फूल और कोई भी फल चढ़ा दीजिए। भगवान उसी पर खुश रहते हैं। बस शर्त एक ही है- आपके दिल में उनका सबसे ऊंचा स्थान होना चाहिए। चाहे आप सिर्फ जल ही क्यों चढ़ाएं।

1 comment:

निर्मला कपिला said...

दिव्य पोस्ट। धन्यवाद।