Wednesday, November 24, 2010

अपने भीतर प्रेम, आनंद और शांति बनाए रखने का संदेश

विनय बिहारी सिंह

चौदह नवंबर २०१० को ठीक साढ़े नौ बजे शरद संगम का उद्घाटन हुआ। छह गुरुओं के चित्र के सामने मोहक ढंग से सुसज्जित मंच पर ११ स्वामी जी लोग बैठे। स्वामी का अर्थ है- स्वयं का स्वामी। मन, इंद्रिय बुद्धि और प्राण पर नियंत्रण करने वाले साधक। आत्मोद्धार के प्रतीक। इस अवसर पर दयामाता का संदेश अत्यंत प्रेरक था। वे योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया व सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप की संघमाता और अध्यक्ष हैं। आमतौर पर उन्हें मां कहा जाता है। मां ने कहा- शरद संगम में आपको जो प्रेम, आनंद और शांति मिलने वाली है, उसे खोएं नहीं। इसे अपने साथ घर ले जाएं और उसे बनाए रखें। यह प्रतिदिन ध्यान करने से संभव होगा। कुछ अद्भुत बातों का जिक्र करना आवश्यक है। आश्रम में कोई अखबार, या दुनियादारी वाली कोई पत्रिका नहीं थी। संगम में भाग लेने वाले लोगों अखबार वगैरह की जरूरत ही नहीं महसूस होती थी। जो लोग मीडिया से जुड़े थे और योगदा आश्रम के भक्त थे, वे भी अखबार के प्रति उदासीन हो गए थे। जो लोग खबरों में जीते हैं, वे कैसे एक आध्यात्मिक माहौल में रम सकते हैं। यह इसका उदाहरण है। कुछ डाक्टर भी आए थे। वे सात दिनों तक स्वयं को भूल कर भजन, ध्यान और शक्ति संचार व्यायाम को सुखद मान रहे थे। भारी संख्या में मौजूद भक्त किसी व्यक्तिगत काम से आश्रम से बाहर नहीं जाते थे। उन्हें हमेशा लगता था कि कोई महत्वपूर्ण कार्यक्रम छूट न जाए। संगम आए लोगों के पास आध्यात्मिक कामों से बिल्कुल फुरसत नहीं थी। सुबह सात बजे से कार्यक्रम शुरू हो जाता था। सुबह- शाम शक्ति संचार व्यायाम, सामूहिक ध्यान, महत्वपूर्ण विषयों पर प्रवचन, सत्संग। जलपान और भोजन। जिन यात्रियों को धर्मशालाओं में ठहराया गया था, उनके लिए बसों, कारों इत्यादि की व्यवस्था की गई थी। निर्देश पुस्तिका में लिखा था- यदि आपकी तबियत खराब हो जाए या कहीं चोट इत्यादि लग जाए तो कृपया स्वागत कक्ष में आकर सूचित करें ताकि हम आपके उपचार की व्यवस्था कर सकें। सब कुछ व्यवस्थित, शांत और प्रशंसनीय। हजारों लोग कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे हैं। जलपान, चाय और भोजन बन रहा है। लेकिन कहीं कोई गंदगी आपको नहीं मिलेगी। कहीं कोई अव्यवस्था नहीं। प्रवेशार्थियों, ब्रह्मचारियों और सन्यासियों के चेहरों पर व्यस्तता तो दिख रही थी, लेकिन उसके पीछे शांति और आनंद को साफ- साफ महसूस किया जा सकता था। एक भक्त ने कहा- आश्रम में जो उत्कृष्ट व्यवस्था दिख रही है, क्या वह समाज में संभव नहीं है। जैसे यहां हर चीज करीने से रखी जा रही है, एक शांत और कारगर व्यवस्था लगातार काम कर रही है, वैसा ही पूरे देश संभव हो जाए तो क्या हमारे देश का चेहरा नहीं बदल जाएगा? अगर आपके मन में कोई प्रश्न है तो वहां आसपास व्यस्त किसी भी सन्यासी से पूछ सकते हैं। सन्यासी मुस्करा कर क्षण भर रुकेंगे और आपके प्रश्न का उत्तर देकर फिर काम में व्यस्त हो जाएंगे। हम सब समझते हैं कि हमारे सांसारिक जीवन में ही काम होता है, आश्रम में सन्यासी आराम से होंगे। लेकिन यहां तो उल्टा दिखा। भक्तों के लिए यहां दो लाख फाइलें हैं। सबके प्रश्नों, सबकी शंकाओं का समाधान तो होता ही है, किस भक्त ने क्या प्रगति की, उसे आगे क्या करना है, यह भी बताया जाता है। योगदा के स्कूल, दवाखाना और अन्य राहत कार्यों के लिए फाइलें। देश भर की गतिविधियों की फाइलें, योगदा पाठों की फाइलें। हां, सब कुछ कंप्यूटर में हैं। लेकिन इन पर रोज पैनी नजर रखनी पड़ती है। लेकिन इस कठिन परिश्रम से मुक्त होकर सन्यासी गहरा ध्यान करने बैठ जाते हैं। हम परिवारी जन खाली समय में कहीं घूम आते हैं, अखबार पढ़ लेते हैं, या कुछ और कर लेते हैं। लेकिन ये सन्यासी कठिन श्रम करते हुए भी लंबा और गहरा ध्यान करते हैं। फिर हम किस मुंह से पूछें कि आफिस से घर आते आते देर हो जाती है। ध्यान का समय कैसे निकालें? सन्यासी तो लंबे और कठोर श्रम के बाद ध्यान को मधुर आहार मानते हैं। उनसे समय की कमी की बात कहते हुए कोई भी संवेदनशील व्यक्ति हिचक जाता है। हां, अनुशासित जीवन को प्रत्यक्ष देखना एक अलग अनुभव है। परमहंस योगानंद का यह संदेश बार- बार याद आता रहा- हम दिव्य ऊर्जा के अनंत समुद्र में रह रहे हैं। उसे अपने भीतर लाइए। कैसे? उसके तरीके उन्होंने बताए हैं। क्या यही ऊर्जा यहां के संन्यासियों, ब्रह्मचारियों और प्रवेशार्थियों को कठोर परिश्रम करने के योग्य बनाती है? इतनी शांति, धैर्य और गहराई से भक्तों के प्रश्नों का उत्तर देना सहज ही संभव नहीं है। निश्चय ही इसके लिए तप करना पड़ा होगा। हम सांसारिक लोग सब कुछ तो व्यवस्थित रखते हैं लेकिन व्यवहार में ही संतुलित नहीं रह पाते। कई बार झुंझला जाते हैं, झगड़ा कर बैठते हैं, तनाव में आ जाते हैं। संन्यासियों के व्यवहार से लगा- इसे कहते हैं आदर्श व्यवहार। सचमुच सबकुछ हमारे भीतर ही है, लेकिन हम उस पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते।

1 comment:

vandana gupta said...

बेहद सार्थक और सटीक पोस्ट्……………बहुत अच्छा लगा जानकर्……………काश ऐसा संभव हो सके सभी जगह्।