भगवान से कैसे करें प्यार?
विनय बिहारी सिंह
एक आत्मीय ने पूछा कि ईश्वर से हम कैसे प्रेम करें, जबकि हमने उन्हें देखा नहीं है। न उनका कोई रूप जानते हैं और न वे कुछ आभास कराते हैं?
इसका उत्तर वहां मौजूद एक सन्यासी ने दिया- आप का अस्तित्व है? उत्तर मिला- हां। सन्यासी ने कहा- जब आपका अस्तित्व है तो आप पृथ्वी पर आए कहां से? जवाब मिला- माता के गर्भ से। सन्यासी ने पूछा- क्या माता ने आपके भीतर प्राण डाला? जवाब मिला- पता नहीं। फिर सन्यासी ने पूछा- मां के गर्भ में आने के पहले आप कहां थे? जवाब मिला- पता नहीं। तब सन्यासी ने कहा- यहीं पर गौर कीजिए। आपका जीवन कोई और चला रहा है। उन्हीं का नाम भगवान है। भगवान ही सारे ब्रह्मांड को चला रहे हैं। वरना चांद- सितारे आपस में टकरा जाते। कोई तो उन्हें संतुलित ढंग से रखे हुए है। सब भगवान के नियंत्रण में है। बस, वे लीलामय हैं। खुद नहीं दिखते। उनका दर्शन दुर्लभ है। वे उन्हीं को दिखते हैं जो दृढ़ और गहरी भक्ति के साथ उन्हें पुकारते रहते हैं। वरना अदृश्य रहते हैं। जिन्होंने हमारा निर्माण किया, क्या उनको हम प्रेम नहीं कर सकते? अपने जन्म स्थान के प्रति हमारा गहरा मोह होता है। अपनी संतान से गहरा मोह होता है। अपने शरीर से गहरा मोह होता है। लेकिन जो हमारा परमपिता या माता या दोस्त है, उसे हम प्रेम नहीं कर सकते? क्या विडंबना है। ऐरी- गैरी चीजों, भौतिक वस्तुओं से तो हम प्रेम करते हैं। कई लोग तो ऐसी वस्तुओं के प्रेम में पागल हो जाते हैं। लेकिन भगवान के प्रति उनके मन में प्रबल प्रेम नहीं जागता। इसका मतलब है वे शैतान के शिकंजे में हैं।
2 comments:
यही भौतिक वस्तुओं का मोह इंसान को परेशान किये रहता है और वो कभी जान ही नही पाता कि उसे चाहिये क्या? भगवान से प्रेम ………………ये आज के इंसान को कहाँ आता है? जब तक भगवान उनकी इच्छायें पूर्ण कर रहा है तभी तक प्रेम करते हैं उसके बाद नही………………निस्वार्थ प्रेम तो सिर्फ़ गोपियों ने ही किया था और वैसा प्रेम करने वाले विरले ही होते हैं।
वाह सर! बहुत बढ़िया आध्यात्मिक जानकारी हम तक सरल रूप पहुँचाने के लिए साधुवाद। जैसा आपने बताया 8 दिनों के लिए जा रहे हैं। निश्चित रूप से एक अलौकिक आनंद की प्राप्ति के बाद लौटेंगे।
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