Tuesday, November 9, 2010

भगवान शिव ने मोक्ष प्रदान किया

विनय बिहारी सिंह


एक साधु बहुत दिनों से तपस्या कर रहे थे। तप से तपस्या। यानी इंद्रियों से मन को खींच कर ईश्वर में लगाना। यही तप है। इसके अलावा खान- पान, आचार- विचार और व्यवहार में संतुलन। तो साधु तपस्या कर रहे थे। अचानक एक रात उनके सामने शुभ्र ज्योति प्रकट हुई। यह ज्योति लगातार फैलती गई। जिस जगह वे तपस्या कर रहे थे, वहां से फैलते- फैलते प्रकाश मानो संपूर्ण ब्रह्मांड तक फैल गया। वहां से प्रकट हुए शुद्ध स्फटिक के समान भगवान शिव। साधु ने आंखें खोलीं। सामने साक्षात भगवान शिव को देख कर वे आनंद से विभोर हो गए। वे बोले- भगवन, मैं तो आप ही को इतने दिनों से पुकार रहा था। कभी ऊं नमः शिवाय का जाप करता था तो कभी कातर हो कर पुकारता था- हे भगवान शिव, आप कहां है। दर्शन दीजिए प्रभु। अब आप आ गए तो अब मत जाइए। हमेशा मेरे ही साथ रहिए। भगवान शिव ने कहा- मेरी इच्छा है कि तुम मुझसे कुछ मांगो। साधु ने कहा- भगवन, आशीर्वाद दीजिए कि मैं सदा शिव आनंद में डूबा रहूं। बस। भगवान शिव ने कहा- ऐसा ही हो। साधु खुशी से नाचने लगे। वे बोले- भगवन, जब आपके आनंद में डूबा रहूंगा तो उस समय आप मेरे साथ रहेंगे न? भगवान बोले- अवश्य। साधु के जीवन का यह सर्वोत्तम क्षण था। भगवान शिव बोले- एक वर और मांगो। साधु ने कहा- प्रभु, मुझे और कुछ नहीं चाहिए। मैं तो बस आपको ही चाहता हूं। आप मेरे साथ हैं तो मुझे कुछ नहीं चाहिए। जहां आप रहते हैं- वहां रोग, शोक, कष्ट और परेशानियां नष्ट हो जाती हैं। आपका भक्त सुखी, निरोग, और आनंद से ओतप्रोत रहता है। उसे और क्या चाहिए? मैं तो साधु हूं। मैं तो आपके लिए ही तपस्या कर रहा था। संसार के लोग माया जाल से मुक्त होकर आपकी शरण में आएं, यही मेरी इच्छा है। भगवान शिव मुस्कराए और बोले- जो मुझे याद करता है, उसके पास मैं तुरंत पहुंचता हूं। लेकिन अगर कोई मेरी उपस्थिति महसूस ही न कर पाए, तो मैं क्या कर सकता हूं।

2 comments:

vandana gupta said...

बिल्कुल सही कहा।

महेन्‍द्र वर्मा said...

प्रेरणा देने वाली सुंदर कथा है।