Saturday, November 27, 2010

ईश्वर को पुकारते रहने की सीख

विनय बिहारी सिंह

योगदा आश्रम रांची में अनेक लोगों ने करीब- करीब एक ही प्रश्न पूछे- ईश्वर की कृपा कैसे मिले। पूज्य सन्यासियों ने कहा- परमहंस योगानंद जी ने कहा है- सदा ईश्वर को पुकारते रहिए। काम करते हुए, आराम करते हुए, चलते- फिरते, सोते- जागते..... हर क्षण। यह पुकार मुंह से नहीं हृदय की गहराई से आनी चाहिए। भाषा चाहे जैसी हो, लेकिन आकुलता होनी चाहिए। संसार की हर चीज से आपका मोहभंग हो जाएगा, लेकिन ईश्वर से आपका मोहभंग हो ही नहीं सकता क्योंकि वे नित नवीन आनंद हैं। उनको पा लेने के बाद सब कुछ मिल जाता है। तब सारी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। क्योंकि एक केवल ईश्वर ही संपूर्ण हैं। परमहंस योगानंद जी ने कहा है- हमेशा कहते रहिए- मेरे प्रभु, मेरे प्रभु। भगवान आपके प्रेम से खिंचे चले आते हैं। वे तो आपके भीतर ही हैं। लेकिन हमें इसलिए महसूस नहीं होता क्योंकि हम प्रपंचों में फंसे रहते हैं। बाहरी दुनिया हमारे भीतर भी हलचल मचाए रहती है। इससे मुक्त होते ही भगवान आते हैं यानी अपनी उपस्थिति महसूस कराते हैं। कबीरदास ने कहा ही है-
पोथी पढ़ि- पढ़ि जग मुआ
पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का
पढ़े सो पंडित होय।।

उन्होंने ईश्वर को प्रेम करने का संदेश दिया है। आप चाहे जो कर लें, लेकिन जब तक ईश्वर से प्रेम नहीं करेंगे, आप उनकी उपस्थिति महसूस नहीं कर सकेंगे।
योगदा आश्रम में इन्हीं बातों को आत्मसात करते हुए भक्त आनंद मग्न थे।

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