Wednesday, November 3, 2010

मन स्थिर ऱखने के फायदे

विनय बिहारी सिंह


योग वशिष्ठ में एक बहुत अच्छा श्लोक हैः

मनो स्थैर्ये स्थिरो वायुः
ततो बिंदुः स्थिरो भवेत्
बिंदु स्थैर्ये सदा सत्वं
पिंड स्थैर्ये प्रजायते।।

यानी मन स्थिर होता है तो प्राण स्थिर हो जाता है। तब प्रकाश बिंदु स्थिर होता है। आंख बंद करें और प्रकाश बिंदु दिखेगा। यह स्थिति आते ही आप तमाम विकारों, बंधनों और कष्टों से मुक्त हो जाएंगे। आप जानते ही हैं कि मुनि वशिष्ठ भगवान राम के गुरु थे। योग वशिष्ठ की प्रत्येक पंक्ति गहरे आध्यात्मिक संदेश देने वाली है। आप पूछ सकते हैं कि मन कैसे स्थिर हो? तो इसका उपाय यही है कि यह महसूस कीजिए कि आप न अपनी मर्जी से यहां आए हैं और अपनी मर्जी से इस पृथ्वी से जाएंगे। जैसे आपके इस पृथ्वी पर आने का समय तय था, ठीक उसी तरह जाने का समय भी तय है। बीच के समय में आप पृथ्वी पर बिता रहे हैं। सभी संतों ने कहा है कि जब तक जीएं, ईश्वर का स्मरण करते रहें। उनका आभार जताते रहें कि उन्होंने मनुष्य योनि में जन्म दिया है जिसके कारण आप पूजा, पाठ या जप करने में सक्षम हैं। अपने मोक्ष के बारे में सोच रहे हैं। परोपकार के बारे में सोच रहे हैं। ईश्वर से प्रेम कर रहे हैं। ईश्वर से प्रेम क्यों करें? क्योंकि ईश्वर से ही हम आए हैं और ईश्वर में ही हमें मिल जाना है। हम जितने तरह के भी आनंद ढूंढ़ लें, लेकिन उससे हमें पूर्ण तृत्प्ति नहीं मिलेगी। तृप्ति मिलेगी तो बस ईश्वर से संपर्क करने से। संपर्क कैसे होगा? उनको हृदय से पुकारने से, हृदय से प्रार्थना करने से, संभव हो तो उनके लिए रोने से। वे हमें हमसे ज्यादा जानते हैं। क्योंकि वे ही हमारे मालिक हैं। यह ब्रह्मांड भी उनका है और हम भी उनके हैं।

No comments: