भगवान श्रीकृष्ण ने भगवत गीता में कहा है- जो मुझे अनन्य प्रेम से भजते हैं। जो मुझे कभी नहीं भूलते, उन्हें मैं भी कभी नहीं भूलता। वे मुझमें और मैं उनमें हूं। कितना सांत्वनादाई वादा है यह। हम अपने हृदय से भगवान के नाम का उच्चारण करते हैं और यह पुकार तत्क्षण उन तक पहुंच जाती है। भगवान कहते हैं- मेरे भक्त कभी नष्ट नहीं होते। यानी भगवान अपने भक्तों की सदा रक्षा करते हैं। रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे- भक्ति, भक्त और भगवान- एक हो जाएं तो फिर कहना ही क्या। यही चरम स्थिति तो पाने के लिए भक्त छटपटाता रहता है। वह भीतर से पुकारता रहता है- कहां हैं भगवान। दर्शन दीजिए। वह भगवान को महसूस करता रहता है लेकिन जब उनके दर्शन नहीं होते, सिर्फ अनुभूति होती है तो वह कहता- दर्शन दीजिए प्रभु। दर्शन दीजिए। भगवान यह सुन कर मुस्कराते हैं। वे भक्त की व्याकुलता को और परखना चाहते हैं। यह भक्त और भगवान के बीच चलता रहता है। यह भगवान को भी अच्छा लगता है और भक्त को भी।
1 comment:
रूठे हुए शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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