Wednesday, October 17, 2012

आदि शक्ति की नवरात्रि


 विनय बिहारी सिंह

नवरात्रि आदि शक्ति की अराधना का समय है। पश्चिम बंगाल में पंडालों में मां दुर्गा की प्रतिमा के साथ माता लक्ष्मी और सरस्वती की भी मूर्तियां रखी होती हैं। मां दुर्गा महिषासुर का वध कर रही होती हैं और उनकी बगल में लक्ष्मी जी और सरस्वती जी शांत भाव में विराजमान होती हैं। इसका अर्थ है यदि हम अपने भीतर के महिषासुर का वध कर दें यानी अपने भीतर की बुरी प्रवृत्तियों का नाश कर दें तो लक्ष्मी यानी धन- धान्य से संपन्न होंगे और सरस्वती यानी ज्ञान से पूर्ण होंगे। नवरात्रि इसी का स्मरण कराने आता है। आदि शक्ति यानी मातृ शक्ति। इसीलिए दुर्गा पाठ में कहा जाता है- या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः।। बिना शक्ति के हम हैं क्या? शक्ति के बिना तो हम मुर्दे के समान हो जाएंगे। यह शक्ति आती कहां से है? निश्चय ही ईश्वर के पास से। वही शक्ति हैं, वही शिव हैं। यानी शिव-शक्ति वही हैं। माता पार्वती ही दुर्गा, काली और अन्य शक्ति रूपों में हैं। माता पार्वती के पति यानी भगवान शिव सदा ध्यान में मनोहारी मुस्कान बिखरते हुए अपने भक्तों को आशीर्वाद देते रहते हैं। आइए इस नवरात्रि में हम शिव- शक्ति की विशेष अराधना करें।

1 comment:

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर विचारो का समावेश किया है आभार