विनय बिहारी सिंह
राम या कृष्ण के शासनकाल में आम आदमी महंगाई से कराहता नहीं था। बाजार लोगों को जरूरत की चीजें सही दाम पर मुहैया करा देते थे। राजा के मंत्री भी अत्यंत जिम्मेदार थे और वे हमेशा इस कोशिश में लगे रहते थे कि जनहित का काम ज्यादा से ज्यादा कैसे हो। जिनके घर खाने को नहीं था, उनका जिम्मा राजा उठाता था। इसके लिए एक संस्था का गठन कर दिया गया था जो पता लगा लेती थी कि कहां लोग भूखे सो रहे हैं। वहां भोजन का अच्छा प्रबंध कर दिया जाता था। लेकिन जिन्हें मुफ्त का भोजन मिलता था वे अकर्मण्य नहीं रहते थे। उनमें काम करने की ललक रहती थी। हां, आलसी लोग भी होते थे लेकिन उनकी संख्या बहुत कम थी। राजा अपनी जिम्मेदारियों से मुकरता नहीं था। वह बाजार ही नहीं सुरक्षा एजंसियों पर भी कड़ी नजर रखता था। उसके गुप्तचर अत्यंत मेधावी थे। उनकी संख्या बहुत ज्यादा थी। गुप्तचर दरअसल लोगों की आबादी के आधार पर रखे जाते थे ताकि कहीं से सूचना मिलने में चूक नहीं हो। एक सुचारु तंत्र का यही गुण है। पर्यटक और शोधकर्ता ह्वेनसांग ने तो प्राचीन भारत के बारे में बहुत ही प्रशंसा लिखी है। उसने जो कुछ भी देखा, वही लिखा। उसने लिखा है कि घरों में ताला लगाना जरूरी नहीं था। लोग यूं ही कुंडी चढ़ा कर घूमने निकल जाते थे। अगर किसी ने गलती से किसी के पास कुछ धन छोड़ दिया या उसे वापस लेना याद नहीं रहा तो जिसके पास धन रखा है वह ढूंढ़ कर उस आदमी को वापस कर आता था। यह जानकारी कहां से मिली? आप परमहंस योगानंद की आटोबायोग्राफी आफ अ योगी पढ़ लीजिए। उसमें प्राचीन भारत की समृद्धि की दास्तान मिलेगी। लेकिन आज क्या है? क्या आधुनिक भारत जो टेक्नालाजी और ग्यान में खुद को अग्रणी मानता है, नैतिकता में भी आगे है? क्या आज आम आदमी खुद को सुरक्षित और खुश मानता है? क्या उसकी भूख, उसके अभाव और उसकी चिकित्सा की परवाह किसी सरकार को है? यूं तो यह जगह अध्यात्म की है। लेकिन आइए संक्षेप में जानें कि आज इक्कीसवीं सदी में हमारा क्या हाल है। केंद्रीय कृषि मंत्री कह चुके हैं कि महंगाई रोकना असंभव है। केंद्र सरकार भी अपनी चुप्पी से यही बात दुहरा रही है। क्या आप दुनिया के किसी सुव्यवस्थित देश को जानते हैं जिसकी सरकार महंगाई रोकने में विफल हो? नहीं। केंद्र सरकार को इस पर शर्म नहीं आती। यह अति मुनाफाखोरी को महिमामंडित करना है। यानी बाजार केंद्र सरकार के नियंत्रण में नहीं है। यह कैसी सरकार है? क्यों बाजार उसके नियंत्रण में नहीं है? हर सांसद को उसके क्षेत्र के विकास के लिए २ करोड़ रुपये की मोटी रकम मिलती है। अब सांसद इस रकम को ५ करोड़ तक करने की मांग कर रहे हैं। उधर एक राज्य सभा के एक सांसद ने मांग की है की सांसद निधि ही खत्म कर दी जाये। इससे भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। हर सांसद और संसद को कानून बनाने ही नहीं, कानून को लागू करने का भी पूरा अधिकार है। फिर यह ड्रामा क्यों? सारी केंद्र सरकारें एक जैसी हैं। चाहे वे किसी पार्टी की हों। अपने देश में कोई भी पार्टी नहीं है जो जनहित के बारे में सोचे। सब राजनीति में कमाई करने या लूट- खसोट करने गए हैं। न कोई नीति न नैतिकता और न लोकहित। सिर्फ बयान भर दे देना है- हम महंगाई रोकने में नाकाम हैं।
2 comments:
आप प्राचीन भारत की अच्छाईयों की चर्चा करेंगे .. तो आज के वैज्ञानिक दृष्टिवाले पाठक गुलामी वाले भारतवर्ष की चर्चा कर आज के सुख सुविधा संपन्न भारत को ही ऊंचा दिखाने की कोशिश करेंगे .. ये मान ही नहीं सकते कि हमारे प्राचीन ज्ञान , विज्ञान और परंपरा कितनी समृद्ध थी !!
सही कहा आपने संगीता जी से भी सहमत हूँ
कहीं पढ़ा था
"Earths biggest disease is progress"
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