विनय बिहारी सिंह
ऋषियों ने कहा है- ऊं या ओम ईश्वर वाचक शब्द है। यह अनहत नाद है। कैसे? ऋषि कहते हैं ऊं या ओम तीन शब्दों से बना है- अ, उ और म। अ- यानी सृष्टि, उ- यानी पोषण या सस्टेनेंस और म- यानी लय, जिसे कुछ लोग संहार भी कहते हैं। तो यह ईश्वर वाचक कैसे है? हर आवाज दो वस्तुओं की टकराहट से निकलती है जैसे- ताली या वाद्य यंत्र या अन्य कोई आवाज। अनहत यानी बिना किसी वस्तु के टकराए जो आवाज शास्वत सृष्टि में गूंज रही है वह है ऊं। यह ईश्वरीय सृष्टि की आवाज है। वेद कहते हैं कि अगर ईश्वर से संपर्क करना है तो आप ऊं से संपर्क करें। कैसे? अत्यंत गहरे ध्यान में उतर कर ऊं को सुनें और धीरे- धीरे आपका उसमें लय हो जाए। यानी आप और ऊं एक हो जाएं। तब ईश्वर की अनुभूति होगी। वेद कहते हैं ऊं का उच्चारण संभव नहीं है। ऊं की नकल कर मुंह से उसका उच्चारण संभव नहीं है क्योंकि वह अनहत नाद है। उसकी एकदम कापी नहीं हो सकती। मंदिर में घंटों की आवाज या गिरिजाघरों में घंटों की आवाज ऊं का ही द्योतक है। लेकिन एकदम हू-ब- हू ऊं की नकल नहीं है क्योंकि यह संभव ही नहीं है। ऋषियों ने कहा है कि ऊं अनवरत यानी २४ घंटे सृष्टि में बज रहा है। इसे सुनने से मन को शांति मिलती है। कई लोग तो अपने घरों में या दफ्तर में सुबह शाम ऊं का कैसेट सुनते हैं। इसी में उन्हें बहुत आनंद मिलता है। लेकिन जहां सन्नाटा हो, वहां भी ऊं तो है ही। ऊं से ही यह ब्रह्मांड बना है। बाइबिल में भी कहा है- द वर्ड वाज विथ गॉड एंड वर्ड वाज गॉड। यानी यह शब्द ही ईश्वर है। यह शब्द क्या है? ईसाई धर्म में ऊं आमेन हो जाता है। यह ऊं ही है। यही शब्द सर्वाधिक पवित्र और दिव्य अनुभूतियों का स्रोत है। ऊं के संपर्क से ही पता चलता है कि हम सिर्फ शरीर नहीं हैं। हम मन या चित्त नहीं हैं। हम तो सच्चिदानंद आत्मा हैं। निरंतर आनंद में डूबे हुए। पवित्रता के पर्याय। यह अलग बात है कि हम खुद को भूल गए हैं। हमें हमारी अपनी ही आकांक्षाएं, इच्छाएं और वासनाएं नचा रही हैं। ऐसे में ईश्वर से संपर्क मुश्किल लगता है। लेकिन एक बार ईश्वर की शरण में जाने के बाद हर परिस्थिति आसान हो जाती है। बल्कि सुखद हो जाती है।
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