विनय बिहारी सिंह
कई बार प्रश्न आता है कि मन को वश में करना मुश्किल है। कैसे करें? मन को तो चिंताएं घेरे हुए हैं, चंचल विचार घेरे हुए है, वह वश में आए कैसे? तो हमें फिर गीता की तरफ लौटना पड़ रहा है। भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा है- अभ्यास और वैराग्य से मन वश में आ जाएगा। अभ्यास तो ठीक है। लेकिन वैराग्य कैसे आए? हम कई बार अपनी पूंजी भूल जाते हैं। हमारे पास खजाना है। लेकिन हम भूल गए हैं। याद कीजिए भर्तृहरि को। भर्तृहरि ने एक अत्यंत प्रसिद्ध पुस्तक लिखी है- वैराग्य शतकम। यानी वैराग्य पर सौ पद। यानी सौ कविताएं। वैराग्य के दस उपाय बताते हुए अनेक लोग हांफने लगते हैं। यहां भर्तृहरि ने सौ उपाय बताए हैं। लेकिन इन्हें उपाय कहना ठीक नहीं होगा। ये विचार हैं। इन विचारों को पढ़ कर पाठक का मन उद्वेलित होता है। इनका सार है- इस दुनिया में आप अकेले आए हैं। अकेले ही जाएंगे। कोई किसी का नहीं है। हम अपने स्वार्थों, इच्छाओं और अस्थिरताओं के शिकार हो कर माया के भंवर में फंसे हुए हैं और कष्ट पा रहे हैं। जिस प्रेयसी की देह को आपने इतना आकर्षक माना, वह मृत पड़ी है और आप उसे जल्दी से घर से निकाल कर जला देना चाहते हैं। हम सब अपनी अपनी भूमिकाएं निभाने आए हैं लेकिन माया के जादू में फंस कर कष्ट भोग रहे हैं। सिर्फ और सिर्फ ईश्वर ही इस माया से उबार सकते हैं। यह देह रोज थोड़ा- थोड़ा करके मृत्यु की तरफ बढ़ रही है। एक दिन अचानक आपकी मृत्यु हो जाएगी और आपका धन, मान-सम्मान और घऱ परिवार रखा का रखा रह जाएगा। फिर किसी अन्य परिवार में जन्म होगा और फिर वही माया का जाल। सुख- दुख का भंवर। कष्टों और तनावों का दौर। इसका अंत नहीं। अंत करना है औऱ सुख से रहना है तो ईश्वर की शऱण में जाइए। वगैरह वगैरह। भर्तृहरि ने वैराग्य शतकम चरम वैराग्य की स्थिति में लिखा। उन्हें ईश्वर के सिवा कुछ दिखता ही नहीं था। इस संसार की जिन वस्तुओं के लिए सामान्य लोग तरसते हैं, भर्तृहरि के लिए वे धूल की तरह थीं। रामकृष्ण परमहंस भी कहते थे- रुपया- माटी। माटी- रुपया। यानी मिट्टी औऱ रुपया एक ही है। इसमें आसक्ति कैसी? वैराग्य के सौ उपायों या वैराग्य के सौ विचारों को पढ़ना सुखद अनुभव है। हम एक बार फिर अनुभव करते हैं कि यह संसार हमारे जन्म के पहले भी था और मृत्यु के बाद भी रहेगा। संसार तो आपकी परवाह नहीं करता। लेकिन आप संसार के मायाजाल में बुरी तरह फंसे रहते हैं। इससे मुक्ति के उपायों का ही नाम है- भर्तृहरि शतकम।
1 comment:
जवानी भृतहरि शतक पढ़ने का सर्वोत्तम समय है।
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