Tuesday, December 8, 2009

कंसंट्रेशन की ताकत

विनय बिहारी सिंह

वैग्यानिकों ने एक ऐसा कंप्यूटर तैयार किया है जो मनुष्य के सोचे हुए शब्दों को लिख देता है। इस कंप्यूटर का संबंध माइंड वाइब्रेशन से है। कैलिफोर्निया के वैग्यानिकों ने यह अद्भुत काम कर दिखाया है। मान लीजिए कि आपने अंग्रेजी का अक्षर वी सोचा। बस कंप्यूटर स्क्रीन पर वी टाइप हो जाएगा। तो ऋषियों ने जो कहा है कि आप जैसा सोचते हैं, वैसे ही बन जाते हैं, वह एक बार फिर साबित हो गया। तुलसीदास के बारे में एक संत ने कहा था- हाथ तुलसीदास के थे लेकिन रामचरितमानस लिखा स्वयं राम ने। यानी तुलसीदास रामचरितमानस लिखते वक्त सुपरकांशसनेस में रहते थे। लेकिन अन्य संतों ने कहा है- तुलसीदास हमेशा ही सुपरकांशसनेस में रहते थे। चाहे रामचरितमानस लिख रहे हों या चुपचाप बैठे हों या किसी से बात कर रहे हों। राम उनकी चेतना में गहरे समाए हुए थे। इसीलिए उनके बारे में कहा जाता है कि वे हनुमान और राम के दर्शन अक्सर किया करते थे। शाम होते ही तुलसीदास अकेलापन चाहते थे। वे अपनी कुटिया बंद कर लेते थे। इसी बंद कुटिया में वे राम और हनुमान से घंटों साक्षात्कार करते रहते थे। जो ब्रह्मांड के मालिक हैं, उनके साथ आनंद करते थे। रामचरितमानस यूं ही अमर कृति नहीं है। तो बात चल रही थी एक अद्भुत कंप्यूटर की। आप जो भी सोचते हैं उसका एक स्पंदन होता है। मान लीजिए आप किसी देवता के बारे में लगातार सोच रहे हैं। मसलन भगवान कृष्ण के बारे में। तो आपके लगातार सोचने का परिणाम यह होगा कि भगवान कृष्ण के स्पंदन आपके भीतर पैदा हो जाएंगे। आपके भीतर एक सुरक्षा कवच बन जाएगा। और भीतर ही क्यों, आपके बाहर भी एक सुरक्षा कवच बन जाएगा जो आपकी लगातार रक्षा करता रहेगा। अगर यकीन न हो तो करके देखिए। दिमाग का वाइब्रेशन बहुत ताकतवर चीज है। इसे ही आधार बना कर वैग्यानिकों ने एक खास सुपर कंप्यूटर तैयार किया है। दरअसल ज्यादातर लोगों का चिंतन इतना बिखरा हुआ होता है कि वे दिमाग को एकाग्रचित्त कर ही नहीं पाते। अन्यथा एकाग्रचित्त से बहुत कुछ संभव है। कंसंट्रेशन की ताकत पर अनेक पुस्तकें लिखी गई हैं। हमारे ऋषि- मुनि तो कहते थे कि ईश्वर की उपस्थिति को महसूस कीजिए। आपकी सांस भी ईश्वर के कारण चल रही है। आपका दिल भी ईश्वर के कारण धड़क रहा है। आपका समूचा अस्तित्व भी ईश्वर के कारण है। आखिरकार कंप्यूटर भी तो आदमी ने ही बनाया है। आदमी को किसने बनाया है? जाहिर है- ईश्वर ने। तो जब कंप्यूटर मनुष्य के सोचे हुए शब्दों को लिख सकता है तो आप ईश्वर के साथ कंसंट्रेशन की स्थिति में क्यों नहीं बात कर सकते? लेकिन इसके लिए गहरी श्रद्धा और विश्वास चाहिए। लगन और अटूट साधना चाहिए। यह लगन, अटूट विश्वास और गहरी भक्ति ही थी कि नचिकेता जैसा बालक यम के पास पहुंच गया औऱ उनसे पूछ बैठा- मृत्यु के बाद आदमी कहां जाता है? यम ने बहुत लालच दिया- सारी पृथ्वी के राजा बन जाओ, लेकिन यह प्रश्न मत पूछो। तुम्हें मैं अजर- अमर होने का वरदान दे दूंगा। लेकिन यह प्रश्न मत पूछो। तुम अभी बच्चे हो। नहीं समझ पाओगे। लेकिन नचिकेता दृढ़ थे। उन्होंने अपने प्रश्न का उत्तर पाने की जिद की। यम समझ गए कि यह साधारण बालक नहीं है। यह बालक के रूप में एक महात्मा है। इसके बाद यम ने जो उत्तर दिया वह कठोपनिषद में दर्ज है। तो गहरी भक्ति के बिना, अटूट विश्वास के बिना कुछ पाने की कल्पना करना व्यर्थ है।

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया जानकारी।

sushil said...

love is god.