Saturday, December 5, 2009

भोग ही हमें भोग रहे हैं

विनय बिहारी सिंह

ऋषियों ने कहा है- हम इस संसार में अपनी भूमिका निभाने आए हैं। किसकी भूमिका? अपने चरित्र की भूमिका। कैसा चरित्र? पूर्व जन्म की इच्छाओं और वासनाओं ने फिर- फिर हमें इस दुनिया में भेजा है। हम यह भोगना चाहते हैं, वह भोगना चाहते हैं लेकिन चाहे जो कुछ भी भोग लें, मन तृप्त नहीं होता। इसका अर्थ है- भोग को हम नहीं भोग रहे हैं, भोग ही हमें भोग रहे हैं। यानी हम्हीं भोगे जा रहे हैं फिर भी भ्रम है कि हम सुख भोग रहे हैं। क्या विडंबना है? हम भोगों से तृप्त नहीं हो पा रहे हैं। और जिसे हम सुख कह रहे हैं, वह वास्तविक सुख है भी नहीं। वास्तविक सुख तो वह है जो एक बार मिलने पर फिर खत्म नहीं होता। अनंत सुख- जिसका अंत नहीं है। यह कैसे संभव है? हमारे ऋषियों ने इसी का उपाय बताया है। बिना किसी फीस के बिल्कुल मुफ्त में। उन्होंने कहा है- ईश्वर से संपर्क जोड़िए। कैसे संपर्क जोड़ें? इसका भी उपाय उन्होंने बता दिया है। आप दिल से ईश्वर को पुकारिए, वे आपकी बात सुनेंगे। वे अंतर्यामी हैं। भगवान के बारे में ऋषियों ने तीन बातें कही हैं- ईश्वर अंतर्यामी हैं, सर्वव्यापी हैं और सर्वशक्तिमान हैं। लेकिन इसके बावजूद कुछ लोगों के मन में शंका बनी रहती है कि पता नहीं मेरी पुकार भगवान सुन भी रहे हैं या नहीं। क्या आश्चर्य है। उच्चकोटि के ऋषियों ने हमें ईश्वर से संपर्क का रास्ता बताया है, लेकिन हम इंद्रियों के इतने गुलाम हो गए हैं कि उनकी बात पर भी शंका करते हैं। किसी सामान्य व्यक्ति की बात पर फिर भी विश्वास कर लेते हैं लेकिन ऋषियों की बात पर शंका करते हैं। कुछ लोग कहते हैं- क्या पता ईश्वर है भी या नहीं? तो यह है हमारा मन। ऋषियों ने अपना समूचा जीवन लोक कल्याण के लिए बिताया। वे जो कुछ मिलता पहन लेते, जो कुछ मिलता खा लेते थे। उनकी अपनी कोई इच्छा नहीं थी। बस उनका एक ही काम था- लोक कल्याण कैसे हो। वे इसके लिए चुपचाप तपस्या करते रहते थे। वे प्रचार से कोसों दूर रहते थे। क्योंकि वे सच्चे साधक थे। लेकिन हम उनकी बात पर भी शक करते हैं और कहते हैं कि क्या पता ईश्वर है भी कि नहीं। इस तरह तो हम कहीं के नहीं रहेंगे। ईश्वर पर गहरा भरोसा और उससे संपर्क के लिए ही हमें मनुष्य जन्म मिला है। इसे सार्थक करना है तो ईश्वर में डूबना चाहिए। अन्यथा संसार के प्रपंच तो अपने जाल में फंसाने के लिए तैयार खड़े हैं। फैसला करना है कि हमें प्रपंच चाहिए या दिव्य आनंद, अनंत आनंद। दोनों रास्ते खुले हैं। भगवान का रास्ता और माया (शैतान) का रास्ता। ईश्वर के रास्ते पर जाने के लिए अपने दिमाग को सख्त करना पड़ेगा और दृढ़ता से ईश्वर के रास्ते पर आगे बढ़ना होगा। शुरू में थोड़ा कठिन लग सकता है, लेकिन आगे का रास्ता अत्यंत आनंदमय है। लेकिन शैतान के रास्ते पर जाने के लिए किसी तैयारी की जरूरत नहीं है। वह तो यूं ही हमें लुभा रहा है। आप सोए हैं तब भी और जगे हैं तब भी।

6 comments:

Unknown said...

विनय जी
बचपन से और ख़ास से पिछले १.५ सालों से ईश्वर को पुकार रहा हूँ

फिर भी जिंदगी भर सबका अच्छा चाहने और करने के बाद भी ये मैं हूँ जो नित नए दुखों में पड़ा रहता हूँ

और वोह लोग जो मेरा बुरा करते आये हैं मेरा हक़ मेरा चैन मुझसे छीन लिए रखे हैं वोह ऐश कर रहे हैं

कहाँ है आपका ईश्वर ?

क्या उसे कुच्छ भी नहीं दिखाई देता?

Unknown said...

भाई आशीष जी
हां, ईश्वर है। आप ईश्वर की शरण में बने रहिए। वे ही मां, बाप, भाई, मित्र और सबकुछ हैं। यह संसार एक स्कूल है मित्र। यहां हमें परीक्षा देनी पड़ती है, तब अगली कक्षा में प्रवेश मिलता है। जिन लोगों को आप सुखी कह रहे हैं, वे क्या वाकई सुखी हैं? समय बड़ा बलवान होता है आशीष जी। आप धैर्य रखिए और ईश्वर को ही अपना आधार बना लीजिए। फिर आपको पूछने की जरूरत नहीं पड़ेगी कि कहां है आपका ईश्वर।

Unknown said...

ईश्वर को सबकुछ दिखाई और सुनाई पड़ता है। आप अपनी पुकार उसे सुनाते रहिए। बस आपका विश्वास अत्यंत गहरा होना चाहिए। कुछ दिन विश्वास और कई दिन तक अविश्वास करने से तो बात नहीं बनेगी। जिसने हमें जन्म दिया है वह ईश्वर ही है। वह हमें प्यार करता है। आपके दुख का भी अंत होगा। कोई चीज इस दुनिया में शास्वत नहीं है। आपका दुख भी शाश्वत नहीं है।

Unknown said...

विनय जी

न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण खोजने से पहले और उस पर विश्वास करने से पहले भी लोग जमीन पे रहते थे आकाश में नहीं

प्रकृति के नियम तो सब जगह एक जैसे होने चाहिए ना?

Unknown said...

baat lambi hoti ja rahi hai. is tarah tukre me samjhana mushkil hai bhai.

Unknown said...
This comment has been removed by the author.