विनय बिहारी सिंह
वैग्यानिकों और पर्यावरणविदों ने माना है कि आने वाले दिनों में धरती का तापमान और ज्यादा बढ़ने से (ग्लोबल वार्मिंग) डार्विन का विकासवाद जैसी स्थिति होगी। यानी जो प्रकृति से लड़ पाएगा, वह जीएगा अन्यथा उसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। तापमान बढ़ने से कुछ जीव- जंतु तो अपने अनुकूल तापमान वाली जगहों पर चले जाएंगे, लेकिन अत्यंत धीमी गति से चलने वाले प्राणी और कुछ वनस्पतियों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। विशेषग्यों का कहना है कि ऐसा पहले भी हुआ है। आखिर डायनासोर और कुछ अन्य जीव पृथ्वी से प्राकृतिक कारणों से ही तो लुप्त हुए। जो वनस्पतियां नष्ट होंगी, उनमें संभवतः कुछ औषधीय गुण वाले पौधे भी हैं। यानी तापमान पृथ्वी के अमृत तत्व को खाता जा रहा है। यह सिर्फ औऱ सिर्फ मनुष्य की अकूत धन कमाने की हवस के कारण हो रहा है। अभी कोपेनहेगन में गरीब देशों ने आरोप लगाया ही है कि सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन धनाढ्य उद्योग प्रधान देश ही कर रहे हैं। यानी पर्यावरण प्रदूषित हो तो हो, हम धन के पीछे ही भागते रहेंगे। पहाड़ काट कर, जंगल काटकर ,नदियों को गंदा कर, जैसे भी हो धन कमाओ। पर्यावरण की चिंता का समय नहीं है। धन को देखते ही अंधा हो चुका मनुष्य अपने भविष्य पर विचार नहीं कर रहा। आने वाली पीढ़ियां इस कारण कितना भोगेंगी, उन्हें इससे कोई सरोकार नहीं। प्रकृति किए का फल सबको देती है। वहां अंधेर नहीं है औऱ न ही किसी की सिफारिश चलती है। आपने तापमान बढ़ाया, इसका फल भोगिए। वहां सीधे सीधे गणित का हिसाब है। यह ईश्वर का नियम है। संतुलित जीवन बिताइए वरना दैहिक, दैविक और भौतिक तापों को झेलिए। इसीलिए बुजुर्गों ने कहा है- जो करोगे, वह भरोगे। एक कवि ने तो कहा ही है- बोया पेड़ बबूल का, आम कहां से खाय।। हम गरिष्ठ भोजन रोज ठूंस- ठूंस कर खाते रहेंगे तो नाना प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त होने में कितना समय लगेगा? थोड़ी सी असावधानी हमारे जीवन में मुश्किल खडा कर देती है। ऐसे भी कई उदाहरण हैं कि आपकी जबान से कोई कठोर शब्द निकल गया और वह आदमी जिंदगी भर आपका दुश्मन बन गया। इसलिए सावधानी से क्यों न चलें। (इसके बाद नए साल में ही भेंट होगी- विनय बिहारी सिंह)