Wednesday, April 29, 2009

जरूरी नहीं कि प्रार्थना रटी रटाई हो


विनय बिहारी सिंह

जरूरी नहीं कि प्रार्थना रटे- रटाए शब्दों में हो। आप मुंह से एक शब्द न बोलें और दिल से ईश्वर से लगातार प्रार्थना करते रहें तो वह ज्यादा प्रभावशाली होगी। अनेक लोगों ने कहा है- प्रार्थना शब्दों से परे है। बस आपके दिल से सच्ची पुकार निकलनी चाहिए। वह सीधे भगवान तक पहुंचती है। भगवान दिल की पुकार सुनते हैं। टालस्टाय की एक बहुत सुंदर कहानी है। एक द्वीप पर तीन संत रहते थे। वे एक ही प्रार्थना जानते थे- हे प्रभु हम तीन हैं और तुम भी तीन हो। हम पर कृपा करो। बस यही उनकी सुबह शाम की प्रार्थना थी। एक विशप ने सुना तो उनके मन में आया कि क्यों न इन संतो को अच्छी सी प्रार्थना सिखा दी जाए। वे उस द्वीप में गए और संतों को एक पुरानी प्रार्थना सिखा दी। फिर वे नाव से लौटने लगे। जब विशप बीच नदी में पहुंचे थे तभी उन्होंने देखा- उनकी ओर प्रकाश का एक गोला आ रहा है। यह गोला जब नजदीक आया तो उन्होंने देखा- ये तो वही तीनों संत थे जिन्हें उन्होंने प्रार्थना सिखाई थी। वे पानी पर दौड़ रहे थे। विशप तो चकित हो गए। निश्चय ही इन संतों के पास दिव्य शक्ति थी। पास आकर ये संत बोले- फादर, हम वह प्रार्थना भूल गए जो आप सिखा कर आए। विशप ने कहा- महान संतों, तुम्हें प्रार्थना सिखाने की कोई जरूरत ही नहीं है। तुम अपनी पुरानी प्रार्थना ही जारी रखो।