विनय बिहारी सिंह
अब अष्टपाशों की बात करते हैं। अष्टपाश क्या हैं- जो मनुष्य को बांधे रहते हैं। मुक्त नहीं होने देते? ये हैं- घृणा, भय, लज्जा, शंका, आसक्ति, वंश, जाति और शुचिता। संतों ने कहा है कि अगर आप इनमें से किसी से बंधे हुए हैं तो आप बेचैन रहेंगे। तो ऐसा कौन व्यक्ति होगा जो इन अष्टपाशों से मुक्त हो? पारिवारिक लोगों में तो कोई नहीं। हर आदमी को किसी न किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थान से आसक्ति है। उसके मन में किसी न किसी चीज के प्रति शंका है, किसी न किसी चीज या व्यक्ति से घृणा है, किसी चीज से भय है, कुछ लोगों के मन में लज्जा भी है। ज्यादातर लोग अपने वंश और जाति के प्रति आसक्त हैं। इन पाशों से धीरे- धीरे ही मुक्त हुआ जा सकता है। अवधूत बाबा कीनाराम ने अष्टपाशों से मुक्त होने के लिए कहा था-करता रहे सब कामफिर भी न करता काम हैआकाश सम निर्लेप हैअवधूत उसका नाम है।अवधूत स्थित क्या है? सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने लिखा है- अ का अर्थ है अमर। व का अर्थ है परम पवित्रता। धू का अर्थ है सभी सांसारिक बंधनों से मुक्ति। त का अर्थ है- तत्वमसि यानी है ईश्वर तू ही मैं हूं अर्थात तू और मैं एक ही हैं। अवधूत लोग इसी स्थित में रहते हैं। वे सब कुछ ईश्वरमय देखते हैं। उनको कोई सांसारिक बंधन छू ही नहीं सकता। बांधना तो दूर की बात है। एक अन्य प्रसंग में कहा गया है- जीवः शिवः शिवो जीवः सः जीवः केवल शिवः पाश बद्ध स्मृतो जीवः पाश मुक्त सदाशिवः।।यानी जीव जब पाश यानी बंधनों से मुक्त हो जाता है तो वह शिव बन जाता है। संतो ने कहा है कि मनुष्य को धीरे धीरे ही सही, अष्टपाशों से मुक्त होना चाहिए। वरना ये अष्टपाश बहुत तड़पाते हैं। कष्ट देते हैं। इनसे मुक्ति ही ईश्वर से मिलन की तरफ ले जाता है। रामकृष्ण परमहंस ने कहा है अष्टपाश कैसे कटेंगे? सिर्फ भगवान का स्मरण, जाप और उनके लिए व्याकुल होने से।
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आभार इस आलेख के लिए.
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जानकारी के लिए धन्यवाद।
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