Thursday, April 23, 2009

रंगनाथजी का मंदिर

डेढ सौ वर्ष पुराना श्री रंगनाथ मंदिर वृंदावन का विशालतम और दक्षिण भारतीय शैली का एकमात्र प्रमुख मंदिर है। विस्तृत भूभाग में फैले मंदिर परिसर में पांच तो परिक्रमाएंही हैं।
मुख्य द्वार के ठीक सामने 50फुट ऊंचा गरूडस्वर्ण मंदिर स्तंभ है। ऊंचे-ऊंचे पत्थरों से विभक्त परिक्रमओंमें से भीतरी परिक्रमा में हनुमानजी, गोपालजीऔर नृसिंह भगवान के श्री विग्रह हैं। इस मंदिर में वर्ष के 365दिनों में कुल 384उत्सव मनाए जाते हैं। इस प्रकार प्रति दिन कोई न कोई उत्सव यहां चलता ही रहता है।
दस दिन का प्रमुख उत्सव ब्रह्मोत्सवचैत्र मास में मनाया जाता है। ब्रह्मोत्सवके अंतिम दिन में जगन्नाथपुरीकी तरह यहां भी विशाल सुसज्जित रथ में रंगनाथ जी की सवारी निकलती है जिसे भक्त गण ही रस्से से खींचते हैं। इस उत्सव को रथ मेला भी कहा जाता है।
मंदिर का निर्माण सेठ लक्ष्मीचंद ने अपने गुरु आचार्य रंगदेशिकस्वामी की प्रेरणा से कराया था और निर्माण कार्य सन् 1849में पूरा हुआ था।
किवदंतीके अनुसार मंदिर का निर्माण पूरा होने और उसमें सामान्य पूजा दर्शन प्रारंभ होने के कुछ ही दिन बाद एक बालक तथा एक बालिका ने रात में स्वामीजीसे स्वप्न में कहा कि आपने सब कुछ तो किया परन्तु हमारे लिए लड्डुओं के भोग की व्यवस्था तो की ही नहीं। बालक-बालिका ने अपना परिचय देते हुए कहा कि हम गोदा रंगनाथ हैं। प्रात:जागने के बाद स्वामीजीने तुरंत बेसन के लड्डुओं की व्यवस्था कर दी जो आज भी चल रही है।
उत्तरप्रदेश पर्यटन विभाग ने इस मंदिर के बाहर लगाए गए प्रस्तर पट्ट में लिखा है श्री रंगनाथजी का मंदिर
दक्षिण भारतीय शैली पर निर्मित वृंदावन का विशाल मंदिर है जिसके मुख्य द्वार का निर्माण राजस्थानी शैली पर आधारित है। मंदिर प्रांगण में लगभग 50फुट ऊंचा स्वर्ण गरूडस्तंभ है। इस मंदिर में पूजा सेवा पारंपरिक वेशभूषा में दक्षिणी ब्राह्मणोंद्वारा की जाती है। प्रत्येक वर्ष चैत्र मास में प्रसिद्ध रथ का मेला यहां का मुख्य आकर्षण है।