Tuesday, April 28, 2009

कृष्ण में सराबोर रहती थीं मीराबाई



विनय बिहारी सिंह


मीराबाई भक्ति धारा की प्रमुख साध्वियों में से एक थीं। हालांकि उनका विवाह चित्तौड़ के राणा सांगा के सबसे बड़े बेटे राजकुमार भोजराज से हुआ था, लेकिन वे सांसारिक कामकाज से पूरी तरह अलग थीं। वैसे तो वे अपने पति की सेवा करती थीं । लेकिन सोते, जागते, खाते- पीते, सांस लेते और भजन गाते हुए वे भगवान कृष्ण में ही मग्न रहती थीं। इसके कारण उनकी ससुराल में उनकी निंदा हुई। प्रताड़ना सहनी पड़ी। लेकिन वह प्रसंग थोड़ी देर बाद में। मीराबाई का जीवन काल १४९८ से लेकर १५४७ ईस्वी तक था। उनके गुरु संत रविदास थे। उन्होंने लगभग १३०० भजन तैयार किए थे। राजस्थान के पाली जिले के मेढ़ता के पास कुडकी गांव में मीराबाई जन्मी थीं। पिता रतन सिंह उस इलाके के धाकड़ आदमी थे। कहा जाता है कि उन्होंने ही जोधपुर की स्थापना की थी। वे राव राठौर राजपूत थे। जब मीराबाई ३ साल की थीं तो एक घुमंतू साधु उनके यहां घूमते हुए आया। उसने उनके पिता रतन सिंह को कृष्ण भगवान की एक छोटी सी मूर्ति दी। पिता ने इसे साधु का आशीर्वाद माना। मीराबाई को वह छोटी सी मूर्ति इतनी प्यारी लगी वे उस पर मुग्ध ही हो गईँ। हालत यह हो गई कि उन्होंने तब तक खाना नहीं खाया, जब तक पिता ने उन्हें वह मूर्ति दे नहीं दी। इसके बाद तो मीराबाई की सारी दुनिया उस मूर्ति में ही बस गई। वे कृष्ण भगवान को खिलातीं- पिलातीं, उनके साथ बातें करतीं और खेलतीं- कूदतीं। जरा बड़ी हुईं तो उन्होंने खुद के भजन बनाए और कृष्ण भगवान की भक्ति में डूब कर भजन गातीं। आखिर वह समय आया जिसका वे इंतजार कर रही थीं। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें दर्शन दिया। मीराबाई इससे संतुष्ट होने वाली नहीं थीं। उन्होंने भगवान से वादा कराया- वे जब चाहेंगी, उन्हें दर्शन देना पड़ेगा। भक्त के सामने भगवान झुक जाते हैं। श्रीकृष्ण भगवान ने मीराबाई की यह शर्त मंजूर कर ली। वे जब चाहे उनका दर्शन कर सकती थीं। बस अब क्या था। वे दिन- रात भगवान में मग्न रहने लगीं। उन्हें और किसी की परवाह नहीं थी। एक बार उनकी एक ननद ( पति की बहन) ने झूठा आरोप लगा दिया कि मीराबाई ने एक व्यक्ति को अपने शयन कक्ष में बैठाया है। क्रोधित हो कर उनके पति तुरंत मीराबाई के कमरे में गए। लेकिन ननद की बात झूठ निकली। मीराबाई तो भगवान कृष्ण की मूर्ति के साथ बातचीत कर रही थीं। वे इस बातचीत में इतनी तन्मय थीं कि उन्हें यह भी होश नहीं था कि कमरे में उनके पति आए हुए हैं। पति को अपनी गलती का अहसास हुआ। ऐसे ही कई मौकों पर उनकी ननद ने झूठ बोला और उसका झूठ बार- बार पकड़ में आया। बादशाह अकबर ने मीराबाई की चर्चा सुनी तो इस साध्वी से मिलने की उनकी इच्छा हुई। लेकिन मीराबाई के परिवार और अकबर में खांटी दुश्मनी थी। अकबर ने भेष बदल कर मीराबाई से मुलाकात की और इतने प्रभावित हुए कि उनके पैरों पर हार चढ़ा दिया। जब उनके पति को मालूम हुआ कि उनके कट्टर दुश्मन ने उन्हें उपहार में हार दिया है तो उन्होंने उन्हें कहा कि वे नदी में चली जाएं और अपने जीवन का अंत कर लें। पति की बात मान कर उन्होंने नदी में प्रवेश किया और बीच नदी की तरफ चलने लगीं। जब कमर तक पानी में गईं तभी भगवान कृष्ण ने प्रकट हो कर कहा कि उनकी जगह तो वृंदावन में है। मीराबाई वृंदावन में रहने लगीं औऱ भगवान कृष्ण की भक्ति में दिन रात बिताने लगीं। एक बार एक साधु ने उनसे मिलने से इसलिए इंकार कर दिया कि वे स्त्री हैं। तब मीराबाई ने उस साधु के शिष्य से कहा- जाकर महात्मा जी से कहो कि मीराबाई ने कहा है कि इस ब्रह्मांड में तो एक ही पुरुष है- भगवान कृष्ण। यह दूसरा पुरुष कहां से आ गया। तब साधु को अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्होंने क्षमा मांगी और मीराबाई से प्रेम से मिले। उनके पति को अपनी गलती का एहसास हुआ। वे वृंदावन जाकर मीराबाई को फिर घर ले आए। लेकिन इसके कुछ ही दिनों बाद वे एक लड़ाई में मारे गए। इसके बाद ससुराल में मीराबाई को तरह- तरह के कष्ट दिए जाने लगे। लेकिन मीराबाई ने अपने शरीर के कष्ट को कष्ट माना ही नहीं। वे तो दिन- रात भगवान कृष्ण के प्रेम में विभोर रहती थीं। धीरे- धीरे उनकी ख्याति पूरे देश में फैल गई। जब पूरा देश उन्हें साध्वी मानने लगा तो घर वालों को लगा- मीराबाई तो उच्चकोटि की साध्वी हैं।