Saturday, April 25, 2009

कैसे त्रस्त करता है हमें अनावश्यक तनाव


विनय बिहारी सिंह

एक पुरानी कथा है- एक राजा को योग्य प्रधानमंत्री नहीं मिल रहा था। उसने तमाम तरह की परीक्षाएं लीं। चुनते- चुनते तीन लोग बच गए। इनमें से एक को प्रधानमंत्री चुना जाना था। इनसे कहा गया कि राजा के पास एक रहस्यमय ताला है। जो इस ताले को खोलेगा, वही इस राज्य का प्रधानमंत्री बना दिया जाएगा। इन तीनों में से दो ने रात भर ताले की तकनीक वाली किताबें पढ़ीं। काफी खोजबीन की। लेकिन तीसरा व्यक्ति निश्चिंत था। वह आराम से सो रहा था। सुबह हुई। इन तीनों को एक कमरे में लगे बंद ताले के पास ले जाया गया। फिर कहा गया- जो इस ताले को खोल देगा, उसे प्रधानमंत्री बनाने की घोषणा अभी कर दी जाएगी। जिन दो ने रात भर ताले की तकनीक पर शोध किया था, वे तुरंत अपनी किताबों में उलझ गए और कहा कि तीन घंटे का उन्हें समय दिया जाए। लेकिन तीसरा व्यक्ति चुपचाप ताले के पास गया औऱ उसे जोर से खींच कर देखा- ताला खुल गया। राजा ने उसे ही प्रधानमंत्री बनाने का एलान कर दिया। फिर राजा ने उन दो लोगों को बुलाया औऱ कहा- सबसे पहले चेक कर लें कि समस्या दरअसल है भी या नहीं। आप लोग तो प्रश्न सुनते ही किताबों के पन्ने पर पन्ने पलटने लगे। ये भी नहीं देखा कि आखिर ताले में कोई समस्या है भी या नहीं। हम मनुष्य भी लगभग इसी तरह के स्वभाव वाले हैं। भविष्य की अनावश्यक चिंताओं में इस तरह घिरे रहते हैं कि सच्चाई की तरफ देखने की फुरसत ही नहीं मिलती। ऐसा अनेक बार होता है कि जिस आशंका से हम मरे जा रहे हैं, वह चीज होती ही नहीं। तब हमें लगता है- मैं तो बेकार ही इस आशंका को सिर पर लादे तनाव में मर रहा था। संतों ने इसीलिए कहा है- वर्तमान में जीओ। जो बीत गया उसे भूल जाओ। पुरानी गलतियां न हों, बस इसी का खयाल रखना चाहिए। वर्तमान अगर सुधर गया तो भविष्य अपने आप सुधर जाएगा। लेकिन मनुष्य ने अपने मन को इतना जटिल बना लिया है कि सहज उपाय भी है, यह सोच नहीं पाता। संतों ने कहा है- सिर्फ ईश्वर की शरण में रहो, वह तुम्हारा ख्याल खुद करेगा। रामकृष्ण परमहंस कहते थे- बिल्ली का बच्चा बनो, बंदर का बच्चा नहीं। बिल्ली अपने बच्चे को मुंह में दबाए रहती है। जहां बच्चे को रखती है, वहां वह मस्ती से म्याऊं, म्याऊं करता रहता है। लेकिन बंदर का बच्चा खुद अपनी मां का पेट पकड़े रहता है कि कहीं गिर न जाए। भगवान जब हमें खुद पकड़ लेंगे तो फिर डर किस बात का? हम क्यों न ऐसा करें कि भगवान खुद हमें पकड़ लें। हम भगवान को न पकड़ें। लेकिन भगवान तभी पकड़ेंगे जब हम उनकी पूर्ण शरणागति में जाएंगे।