Saturday, April 18, 2009

नारद मुनि



विनय बिहारी सिंह


नारद मुनि को हमारी भारतीय फिल्मों और टेलीविजन सीरियलों में बहुत ही हास्यास्पद ढंग से दिखाया जाता है। सच्चाई यह है कि वे एक सिद्ध महात्मा हैं और उन्हें ब्रह्मा का मानस पुत्र कहा गया है। नारद मुनि इच्छाधारी मुनि भी कहे जाते हैं- यानी वे जब चाहे किसी भी लोक में जा सकते हैं। किसी भी देवता से मिल सकते हैं। शिव से पार्वती के विवाह के पहले हिमालय से उन्होंने प्रणय बंधन संबंधी भविष्यवाणियां कर दी थीं। वे ब्रह्मा के मानस पुत्र यानी परम विद्वान हैं। स्वयं ब्रह्मा विष्णु की नाभि से निकले कमल से पैदा हुए हैं। जब ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई तो उन्हें एक अत्यंत विद्वान और सिद्ध मानस पुत्र की जरूरत महसूस हुई। तब उन्होंने इसके लिए नारद को ही चुना क्योंकि नारद जी मंत्रों को इस तरह उच्चारित करते थे कि लगता था वे स्वयं ही मंत्र हैं। नारदमुनि के हाथ में हमेशा वीणा रहती है। इसका अर्थ यह है कि वे संगीत विशारद भी हैं। यानी किस राग और सुर को कब प्रयोग में लाना है, उन्हें अच्छी तरह मालूम है। नारदमुनि लोकहित के लिए पृथ्वी पर भ्रमण करते रहते हैं। जिसकी कोई मदद करने वाला नहीं है, उसे सहारा देते हैं। एक बार दो संत १२ साल से तपस्या कर रहे थे। नारद जी को देखते ही उन संतों ने कहा- महाराज आप भगवान से पूछ कर आइएगा कि वे मुझे कब दर्शन देंगे। नारद जी ने कहा- ठीक है। एक वर्ष बाद जब नारदजी फिर उन संतों के पास से गुजर रहे थे तो उन्होंने नारदजी को घेर लिया और पूछा- भगवान ने क्या कहा? नारद जी ने कहा- भगवान सुई की नोंक से लाखों हाथियों को गुजार रहे हैं। जब यह काम वे खत्म कर लेंगे तो तुम लोगों के पास आएंगे। पहले संत ने कहा- तब तो इस जन्म में उनसे भेंट नहीं होगी। लेकिन दूसरा संत आनंद से नाचने लगा। उसने कहा- भगवान आएंगे, यह आश्वासन ही क्या कम है। जो करोड़ो ब्रह्मांडों को क्षण भर में सुई के छेद से पार करा सकते हैं वे लाखों हाथियों को पार कराने में कितना समय लेंगे। वे तो बस आ ही रहे होंगे। वह आनंद से झूम रहा था। भगवान की प्रशंसा में गीत गा रहा था। पहला संत बोला- यह सच नही है। मैं जा रहा हूं। अब संसार में भोग करूंगा। लेकिन दूसरा संत बोला- जाओ। जब तुम्हें ईश्वर का ही ग्यान नहीं है तो तुम्हारा मन डोलेगा ही। लेकिन मैं तो यहीं रहूंगा। यह कह कर दूसरा संत नाचने लगा और खुशियां मनाने लगा। नारद जी भी उसके साथ नाचने लगे। तभी भगवान वहां प्रकट हुए। और वे भी उस संत का हाथ पकड़ कर उसके साथ नृत्य करने लगे।