Thursday, April 9, 2009

संत मलूक दास

विनय बिहारी सिंह

सभी जाति और धर्मों के लोगों को समान रूप से आकर्षित करने वाले संत मलूक दास का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद के पास हुआ था। जन्म- १५७४ और देहांत १६८२ में। बादशाह औरंगजेब ने उन्हें सम्मान स्वरूप दो गांवों की जागीर सौंप दी थी। मलूक दास ने भक्ति धारा में उन्हीं तत्वों को आगे बढ़ाया जिन्हें मीराबाई, चैतन्य महाप्रभु और संत कबीर ने पुष्ट किया था। एक बार औरंगजेब के दरबार का एक मुसलिम अधिकारी उनसे दीक्षा लेने की कामना से आया। मलूक दास ने उसकी जांच की कि क्या वह सचमुच ईश्वर के लिए व्याकुल है। जब परीक्षा में वह पास हो गया तो उसे उन्होंने सम्मान के साथ दीक्षा दे दी। दीक्षा के बाद उसका नाम रखा- मीर माधव। यानी मुसलिम नाम- मीर औऱ हिंदू नाम माधव। मीर माधव की समाधि संत मलूक दास के पास ही है। मलूक दास के बारे में कहा जाता है कि वे चमत्कार दिखाने में विश्वास नहीं करते थे। लेकिन एक बार वे बरसात के दिनों में नाव से यात्रा कर रहे थे। उनकी नाव जब बीच नदी में पहुंची तो जोर का तूफान आया और स्थिति यह हो गई कि नाव अब डूबी कि तब डूबी। मलूक दास के साथ उनके कई शिष्य और भक्त थे। अचानक सबने देखा कि नाव तुरंत किनारे आ लगी। यह चकित करने वाली घटना थी। बीच नदी में भयानक ढंग से हिचकोले खा रही नाव सेकेंड भर में किनारे कैसे आ लगी? लेकिन मलूक दास नाव से उतर कर हंसते हुए बोले- भगवान की कृपा से हम लोग बच गए। वरना डूब ही जाते। तब एक भक्त ने कहा- आप कैसे डूब सकते हैं महात्मन? तो संत मलूक दास ने कहा- हम तो पहले से ही ईश्वर में डूबे हुए हैं। अब और क्या डूबेंगे।

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