विनय बिहारी सिंह
रमण महर्षि कहते थे- बोलने से ज्यादा ताकत मौन की है। एक संत से किसी ने पूछा- मौन रहने से क्या लाभ होता है? संत ने उत्तर दिया- मौन से आत्मनिरीक्षण का मौका मिलता है। मौन से अपने भीतर झांकने की प्रवृत्ति जागती है। तब हम अपनी कमियों और अच्छाइयों पर गौर कर सकते हैं। चुप रहने या मौन रहने से आपकी जो ऊर्जा बचती है, उसे अगर ईश्वर की तरफ मोड़ दें तो उसका अद्भुत परिणाम मिलता है। मौन आपको खुद से साक्षात्कार कराता है। एक बार एक ऋषि अपनी कुटिया में बैठे थे। वहां उस राज्य के राजा आए और ऋषि से पूछा- आप बिना धन के कैसे अपना जीवन चला पाते हैं? ऋषि का उस दिन मौन व्रत था। वे मुस्कराए और चुप हो गए। राजा को लगा- वे उन्हें मुस्करा कर आशीर्वाद दे रहे हैं। उन्होंने ऋषि की कुटिया का कायाकल्प करवा दिया और ऋषि के लिए वहां वे सारी सुविधाएं मुहैया करा दीं जिससे वे और बेहतर ढंग से साधना कर सकें। हालांकि ऋषि ने ऐसी कोई इच्छा नहीं जाहिर की थी। वे तो सद्भाव से मुस्कराए थे। अगर हम अपने रोजमर्रा जीवन का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि कई बार हम अनावश्यक बोलते हैं। वे लोग जो ज्यादातर गप लड़ाते हैं, वे तो और भी अनावश्यक बोलते हैं। आप कह सकते हैं कि बिना बोले तो जीवन में काम नहीं चलेगा। हां, यह सच है। लेकिन अगर हम तौल कर बोलने का अभ्यास करें तो हमारे जीवन में सार्थक मौन का प्रवेश हो जाएगा। सिर्फ हां कहने से या मुस्करा कर सिर हिला देने से जो काम हो सकता है, उस पर देर तक बोलने का बहाना ढूंढ़ना मौन की अवहेलना ही है। कई लोगों को अनावश्यक रूप से देर तक बोलने के अभ्यस्त होते हैं। वे उस सीमा से कम बोलेंगे तो उन्हें बेचैनी हो जाती है। वे बोलने का कोई न कोई बहाना ढूंढ़ ही लेते हैं। कुछ नहीं तो वे मौसम पर ही घंटा भर बोल सकते हैं। इसका कोई अर्थ नहीं है। कई लोग हफ्ते में एक दिन का मौन रखते हैं। लेकिन अगर मौन रख कर दिमाग को शांत न रखा जाए, तो फिर मौन का कोई अर्थ नहीं है। अगर दिमाग मौन रखने पर भी आंधी- तूफान की तरह दौड़ रहा हो तो मौन का क्या लाभ? मौन के साथ दिमाग और चिंताओं को ईश्वर के हवाले कर दिया जाए तो मौन सार्थक है।