आज एक बहुत अच्छी कथा पढ़ने को मिली। एक भेड़ पालने वाले के पास सौ भेड़ें थीं। एक दिन शाम को भेड़ें चराने के बाद घर लाकर उसने गिनती की तो पाया कि कुल ९९ भेड़ें ही हैं। एक भेड़ गायब है। अंधेरा छाने लगा था। लेकिन उस एक भेड़ के लिए उसने अंधेरे की परवाह नहीं की। उसने टार्च लिया और भेड़ खोजने निकल पड़ा। रास्ते में उसे अपनी वह भेड़ एक झाड़ी में फंसी मिली। उसने सावधानी से उस भेड़ को झाड़ी से निकाला और घर लाकर उपचार किया।
कथा है कि भगवान भी उस भेड़ चराने वाले की तरह हमें ढूंढ़ते रहते हैं। हम जो ईश्वर की राह से भटक गए हैं। ईश्वर हमें पुकारते रहते हैं। पुकारते रहते हैं। वे चाहते हैं कि हम बच्चे उनकी याद करें। उनसे प्यार करें और उनसे संबंध जोड़े रखें। फिर भी हम यदि नहीं सुनते तो वे इंतजार करते रहते हैं। पुकारते रहते हैं। कहते रहते हैं- मेरे बच्चे मेरे पास आओ। असली सुख मेरे ही पास है। आओ न मेरे पास।
लेकिन हम समझते हैं कि भगवान को बाद में याद कर लेंगे। पहले संसार का सुख उठा लें। भगवान कहते हैं- संसार दुखों का घर है। यहां सुख मत ढूंढ़ो। सुख तुम्हें संसार में नहीं, मेरे पास मिलेगा। आओ, मेरे पास आओ।