Wednesday, November 30, 2011

माया के जाल में

विनय बिहारी सिंह



आज दक्षिणेश्वर में अपने गुरुदेव के आश्रम जा रहा था तो एक फ्लैट में बज रहा गाना सुनाई पड़ा- मुसाफिर हूं यारों, न घर है ना ठिकाना... बस चलते जाना है। सिद्ध पुरुषों ने कहा है- यह संसार हमारी धर्मशाला है। यहां हम इसलिए आए हैं कि ईश्वर को प्राप्त कर सकें। लेकिन माया के जाल में ज्यादातर मनुष्य इस तरह फंसते हैं कि वे अपना असली उद्देश्य भूल जाते हैं औऱ सांसारिक प्रपंच में उलझ जाते हैं। एक प्राचीन भजन है- हम परदेसी पंछी बाबा, अणी देस यह नाहीं।। यह संसार हमारा नहीं है। संसार हमारे जन्म लेने से पहले भी था और मरने के बाद भी रहेगा। सिर्फ हम नहीं रहेंगे। और महापुरुषों ने कहा है- जगत मिथ्या, ईश्वर सत्य। इस तरह यह बात स्पष्ट हो जाती है कि इस जगत में हम शिक्षा लेने के लिए आए हैं। अंत में समझ में आता है- मेरा तो कोई नहीं है। सिर्फ और सिर्फ भगवान हैं। और कोई हो भी कैसे सकता है। यह संसार भगवान ने बनाया है। भगवान ने इस संसार को जन्म दिया है। परमहंस योगानंद जी ने कहा है- यह संसार हमारा घर नहीं है। हमारा घर तो ईश्वर के पास है। संसार में तो हम शिक्षा लेने आए हैं। शिक्षा लेने और परीक्षा देने। यदि सफल हो गए तो ईश्वर हमें अपनी गोद में बिठा लेंगे।

Tuesday, November 29, 2011

एक बारात के अनुभव

विनय बिहारी सिंह



पिछले दिनों मैं जोधपुर (राजस्थान) में एक शादी में गया था। बारात दिल्ली से गई थी। जोधपुर में हम बारातियों के मनोरंजन के लिए कन्या पक्ष ने लोकनृत्य और गीत का प्रोग्राम रखा था। उसमें एक नृत्य था घूमर। एक महिला ने सिर पर सात घड़े रख कर तलवार पर नृत्य किया। हम सब बेहद उत्सुकता से इस अद्भुत नृत्य को देख रहे थे। अचानक मुझे महसूस हुआ कि सिर पर रखे सातों घड़े, हमारे मेरुदंड के चक्रों के प्रतीक हैं और तलवार संतुलित जीवन का प्रतीक। मैंने इस नृत्य का फोटो अपने मोबाइल कैमरे में उतार लिया। लेकिन मुश्किल यह है कि मोबाइल से यह कंप्यूटर में ट्रांसफर नहीं हो सकता। अगर हो सकता तो मैं आपको उसकी झलक दिखाता। अद्भुत नृत्य था यह। एक और बात समझ में आई। आमतौर पर बीन को हम सब संपेरे का ही वाद्य मानते रहे हैं। लेकिन इन लोक कलाकारों ने बीन को एक सुरीले वाद्य यंत्र के रूप में इस्तेमाल किया। बीन से इतनी भिन्नता वाली अत्यंत कर्णप्रिय धुनें निकल सकती हैं, मैंने पहली बार जाना। जो महिलाएं नृत्य कर रही थीं। वे कठिन नृत्य के बावजूद हंस रही थीं। मानों यह उनके लिए मामूली खेल हो। लेकिन जो संतुलन और धैर्य मैंने इन नर्तकियों में देखा, वह विलक्षण था। मनुष्य को जीवन में अत्यंत संतुलित रहना चाहिए, यह संदेश इस संगीत कार्यक्रम से बार- बार निकल कर आ रहा था। एक नर्तकी बोली- मैं तो बस यही ध्यान रखती हूं कि नृत्य के समय एक कदम भी गलत न पड़े। वरना नृत्य की गरिमा नष्ट हो जाएगी। ठीक इसी तरह क्या मनुष्य के गलत कदम से उसकी गरिमा नष्ट नहीं हो जाती?

Tuesday, November 15, 2011

एक संत की कथा

विनय बिहारी सिंह



एक संत रोज अपने शिष्यों को गीता पढ़ाते थे। सभी शिष्य इससे खुश थे। लेकिन एक शिष्य चिंतित दिखा। संत ने उससे इसका कारण पूछा। शिष्य ने कहा- गुरुदेव, मुझे आप जो कुछ पढ़ाते हैं, वह समझ में नहीं आता। जबकि बाकी सारे लोग समझ लेते हैं। मैं इसी वजह से चिंतित और दुखी हूं। आखिर मुझे गीता का भाष्य क्यों समझ में नहीं आता? गुरु ने कहा- तुम कोयला ढोने वाली टोकरी में जल भर कर ले आओ। शिष्य चकित हुआ। आखिर टोकरी में कैसे जल भरेगा? लेकिन चूंकि गुरु ने यह आदेश दिया था, इसलिए वह टोकरी में नदी का जल भरा और दौड़ पड़ा। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। जल टोकरी से छन कर गिर पड़ा। उसने टोकरी में जल भर कर कई बार गुरु जी तक दौड़ लगाई। लेकिन टोकरी में जल टिकता ही नहीं था। तब वह अपने गुरुदेव के पास गया और बोला- गुरुदेव, टोकरी में पानी ले आना संभव नहीं। कोई फायदा नहीं। गुरु बोले- फायदा है। तुम जरा टोकरी में देखो। शिष्य ने देखा- बार- बार पानी में कोयले की टोकरी डुबाने से स्वच्छ हो गई है। उसका कालापन धुल गया है। गुरु ने कहा- ठीक जैसे कोयले की टोकरी स्वच्छ हो गई और तुम्हें पता भी नहीं चला। उसी तरह गीता के श्लोक और उसका अर्थ बार- बार सुनने से खूब फायदा होता है। भले ही अभी तुम्हारी समझ में नहीं आ रहा है। लेकिन तुम इसका फायदा बाद में महसूस करोगे। एक वर्ष बाद वही शिष्य गुरुदेव के पास आया और बोला- हां, गुरुदेव। आप ठीक कह रहे थे। अब गीता का भाष्य मेरी समझ में आने लगा है।

Monday, November 14, 2011

वैराग्य

विनय बिहारी सिंह




चौरानबे (९४) साल के अपने पिताजी को देखा- चुपचाप लेटे हुए हैं। कुछ पूछने पर सीमित शब्दों में उत्तर देते हैं। कपड़ों और भोजन के प्रति वैराग्य सा है। धोती जैसे- तैसे पहनी है। उसे संभालने का होश नहीं है। एक जमाने में चमाचम सफेद आकर्षक धोती- कुर्ता पहने हुए उन्हें देख चुका हूं। अब कपड़ों को वे महत्व नहीं देते। जो मिला का लिया। जो मिला पहन लिया। भोजन के प्रति कोई आग्रह नहीं। हालांकि हम सब उनकी पसंद जानते हैं और उन्हें वही दिया जाता है। लेकिन उनकी अपनी रुचियां, शौक आदि खत्म हो गए हैं।
उन्हें देख कर लगता है- यही जीवन का सत्य है। वे अक्सर मृत्यु के बारे में बात करते हैं। कहते हैं- इस शरीर में कब तक प्राण रहेगा? अब प्राण छूटता क्यों नहीं? इसका हम सब जवाब नहीं देते। उनसे दूसरी बातें करने लगते हैं। या कह देते हैं कि आप बहुत दिनों जीएंगे। लेकिन सबको पता है- वे ज्यादा दिन नहीं जीएंगे। बस अपनी आयु पूरी कर रहे हैं। एक जमाने में काफी सक्रिय रहने वाले और अपने इलाके में खूब लोकप्रिय पिता जी, आज चुपचाप बिस्तर पर पड़े रहते हैं। बस काम भर ही बातचीत करते हैं। जो उन्हें पानी पिला देता है, खाना खिला देता है, नहला- धुला देता है, उसे खूब आशीर्वाद देते हैं। चाहे वह घर का ही आदमी क्यों न हो। उनके व्यक्तित्व में यह परिवर्तन देख कर मैं काफी देर तक ईश्वर की लीला के बारे में सोचता रहा।

Saturday, November 5, 2011

कार्बोहाइड्रेट पर कुछ और बातें

विनय बिहारी सिंह



आज कार्बोहाइड्रेट पर फिर कुछ पढ़ने को मिला। आप तो जानते ही हैं कि कार्बोहाइड्रेट मनुष्य के शरीर के लिए जरूरी होता है। लेकिन हद से ज्यादा कार्बोहाइड्रेट हृदय रोग या रक्त शर्करा को बढ़ाता है। कार्बोहाइड्रेट आमतौर पर अनाज, सब्जियों, फलों आदि में मिलता है। लेकिन आस्ट्रेलिया के विशेषग्यों ने कहा है कि पावरोटी, पैस्ट्री और कोल्ड ड्रिंक्स पीने से खून में रक्त शर्करा बढ़ जाती है। इसलिए इनका सेवन नहीं करना चाहिए। क्या न खाएं?? विशेषग्यों का कहना है कि प्रासेस्ड फूड मत खाएं। जैसे बेकरी की चीजें खाना अच्छा नहीं है। खासतौर से पैस्ट्री, पेटीज और क्रीम से लैस केक। इसके अलावा आलू का कम सेवन करना चाहिए। तो क्या खाएं?? सादी घर में बनी हुई रोटी, कम तेल में पकाई सब्जी और फलों का सेवन सबसे अच्छा है। डाक्टरों ने कहा है कि चीनी और मैदे की बनी चीजों से परहेज करें। अच्छा है- संतुलित भोजन, तेल, घी, चीनी और मैदे का कम से कम सेवन और भूख से थोड़ा कम भोजन।
(मित्रों, मैं एक आवश्यक काम से उत्तर प्रदेश जा रहा हूं। एक हफ्ते बाद यानी १४ नवंबर को मुलाकात होगी।)

Friday, November 4, 2011

श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे

विनय बिहारी सिंह



कल एक भक्त बहुत तन्मयता के साथ गा रहे थे- श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेव।
सुन कर बहुत अच्छा लगा। उनसे कहा- आपकी आवाज में जो व्याकुलता है, वही भगवान को आपके पास खींच लाएगी। वे बोले- आपके मुंह में घी शक्कर। भक्त भगवान से कभी मन ही मन बातें करता है तो कभी भजन गाता है, कभी जाप करता है तो कभी तड़प कर कहता है- हा प्रभु, हा भगवान। यह सब भगवान नोट करते जाते हैं। अचानक जब भक्त असावधान रहता है, तभी भगवान उसके हृदय में प्यार का सागर उड़ेल देते हैं। भक्त तो आनंदविभोर हो जाता है। कई भक्त गुप्त रूप से भक्ति करते हैं। कोई नहीं जानता कि वे भगवान की शरण में हैं। वे चुपचाप रहते हैं। प्रकट रूप में ईश्वर भक्ति का कोई संकेत नहीं देते। बस मन ही मन भगवान से गहरा प्रेम करते हैं और एकांत में गहरा ध्यान करते हैं। उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य भगवान को पाना है। हां, जब कोई हृदय से भगवान को जोर से पुकारता है तो वे भीतर तक हिल जाते हैं। वे जैसे पिघलने लगते हैं। जहां कोई भगवान को भाव से पुकारता है, वे वहीं पिघल से जाते हैं। वे खुद को रोक नहीं सकते। वे भगवान के प्रेमी हैं।
मैंने कहा- आप भी तो ऐसे ही भक्त जान पड़ते हैं। अचानक आपने जब यह भावपूर्ण भजन गाया तो पता चला कि आप कितने गहरे भगवान से जुड़ गए हैं।
वे बोले- मैं कहां भगवान से गहरे जुड़ा हूं। गहरे तो जु़ड़े थे रामकृष्ण परमहंस, परमहंस योगानंद, रमण महर्षि...। ये संत सोते- जागते, उठते- बैठते, काम करते हर क्षण भगवान में गहरे समाए रहते थे। हम लोग तो कुछ भी नहीं हैं। काश अगर हम वैसा बन पाते।

Wednesday, November 2, 2011

कैसेट की रील

विनय बिहारी सिंह



अब तो कैसेट का जमाना नहीं रहा। सीडी का जमाना है। हो सकता है सीडी भी खत्म हो जाए और गाने सुनने के लिए लोग किसी बेहतर टेक्नालाजी का इस्तेमाल करें। रास्ते में कैसेट की रील उलझी पड़ी थी। अचानक एक आदमी वहां रुका और वहां से जा रहे लोगों से बोला- कोई नहीं जानता कि इस रील में कौन सा गाना या डायलाग है। क्योंकि यह एक उलझी हुई काले रंग की कोई रील है। काले रंग की भी नहीं, भूरे काले रंग की। इसे जब दुबारा समेट कर कैसेट में फिट कर दिया जाएगा तो यह बजने लगेगा। वरना यह बेकार की चीज हो गया है। मुझे लगा यह आदमी ठीक ही कह रहा है। जब तक आपने इस रील के गाने नहीं सुने, यह रास्ते में पड़ा हुआ फालतू की चीज है। कैसेट बजाते वक्त उलझ गया होगा। इसलिए किसी ने इसे फेंक दिया है। ठीक इसी तरह भगवान में जब गहरी भक्ति और साधना होगी तो मनुष्य की दुनिया ही बदल जाएगी। अन्यथा- लोग बहस करते रहेंगे कि पता नहीं भगवान हैं या नहीं। हालांकि मैंने सुना है कि जो भगवान को नहीं मानते, संकट पड़ने पर उनमें से कुछ लोग- भगवान को पुकारने लगते हैं। तो जब दूध को मथा जाएगा तभी मक्खन मिलेगा। अन्यथा मक्खन छिपा हुआ है और आप कह रहे हैं कि मक्खन कहां है। यह तो दूध है या दही है। दही को भी मथने पर मक्खन निकलता है। दूध की छाली को गर्म करने पर घी निकलता है। सिर्फ कहां है, कहां है कहने से तो काम नहीं चलेगा। दूध को मथना पड़ेगा। उसके लिए धैर्य और कौशल चाहिए। तब जाकर आपको मक्खन मिलेगा। तब जाकर आप जान पाएंगे कि मक्खन का असली स्वाद क्या होता है। ईश्वर ठीक वैसे ही हैं। उनके लिए निरंतर लगे रहना पड़ेगा। प्रार्थना करते रहना पड़ेगा। लगातार। बार- बार। आखिर ईश्वर ही तो सब कुछ हैं। सर्वं खल्विदं ब्रह्म।

Tuesday, November 1, 2011

गीता के कुछ श्लोक और उनके अर्थ

मित्रों, आइए आज गीता के कुछ श्लोकों को अर्थ सहित पढ़ें। इनमें भगवान ने स्वयं अपने बारे में कुछ संकेत दिए हैं। गीता इस पृथ्वी के महानतम ग्रंथों में से एक है। इसे पढ़ना स्वयं को शुद्ध करना है।


पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामहः ।
वेद्यं पवित्रमोङ्कार ऋक्साम यजुरेव च ॥

भावार्थ : इस संपूर्ण जगत्‌ का धाता अर्थात्‌ धारण करने वाला एवं कर्मों के फल को देने वाला, पिता, माता, पितामह, जानने योग्य, पवित्र ओंकार तथा ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद भी मैं ही हूँ॥

गतिर्भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत्‌ ।
प्रभवः प्रलयः स्थानं निधानं बीजमव्ययम्‌॥

भावार्थ : प्राप्त होने योग्य परम धाम, भरण-पोषण करने वाला, सबका स्वामी, शुभाशुभ का देखने वाला, सबका वासस्थान, शरण लेने योग्य, प्रत्युपकार न चाहकर हित करने वाला, सबकी उत्पत्ति-प्रलय का हेतु, स्थिति का आधार, निधान और अविनाशी कारण भी मैं ही हूँ॥

तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्‌णाम्युत्सृजामि च ।
अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन ॥

भावार्थ : मैं ही सूर्यरूप से तपता हूँ, वर्षा का आकर्षण करता हूँ और उसे बरसाता हूँ। हे अर्जुन! मैं ही अमृत और मृत्यु हूँ और सत्‌-असत्‌ भी मैं ही हूँ॥