Friday, November 4, 2011

श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे

विनय बिहारी सिंह



कल एक भक्त बहुत तन्मयता के साथ गा रहे थे- श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेव।
सुन कर बहुत अच्छा लगा। उनसे कहा- आपकी आवाज में जो व्याकुलता है, वही भगवान को आपके पास खींच लाएगी। वे बोले- आपके मुंह में घी शक्कर। भक्त भगवान से कभी मन ही मन बातें करता है तो कभी भजन गाता है, कभी जाप करता है तो कभी तड़प कर कहता है- हा प्रभु, हा भगवान। यह सब भगवान नोट करते जाते हैं। अचानक जब भक्त असावधान रहता है, तभी भगवान उसके हृदय में प्यार का सागर उड़ेल देते हैं। भक्त तो आनंदविभोर हो जाता है। कई भक्त गुप्त रूप से भक्ति करते हैं। कोई नहीं जानता कि वे भगवान की शरण में हैं। वे चुपचाप रहते हैं। प्रकट रूप में ईश्वर भक्ति का कोई संकेत नहीं देते। बस मन ही मन भगवान से गहरा प्रेम करते हैं और एकांत में गहरा ध्यान करते हैं। उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य भगवान को पाना है। हां, जब कोई हृदय से भगवान को जोर से पुकारता है तो वे भीतर तक हिल जाते हैं। वे जैसे पिघलने लगते हैं। जहां कोई भगवान को भाव से पुकारता है, वे वहीं पिघल से जाते हैं। वे खुद को रोक नहीं सकते। वे भगवान के प्रेमी हैं।
मैंने कहा- आप भी तो ऐसे ही भक्त जान पड़ते हैं। अचानक आपने जब यह भावपूर्ण भजन गाया तो पता चला कि आप कितने गहरे भगवान से जुड़ गए हैं।
वे बोले- मैं कहां भगवान से गहरे जुड़ा हूं। गहरे तो जु़ड़े थे रामकृष्ण परमहंस, परमहंस योगानंद, रमण महर्षि...। ये संत सोते- जागते, उठते- बैठते, काम करते हर क्षण भगवान में गहरे समाए रहते थे। हम लोग तो कुछ भी नहीं हैं। काश अगर हम वैसा बन पाते।

1 comment:

priyanka said...

bahut sukun dene wala hai.