विनय बिहारी सिंह
अब तो कैसेट का जमाना नहीं रहा। सीडी का जमाना है। हो सकता है सीडी भी खत्म हो जाए और गाने सुनने के लिए लोग किसी बेहतर टेक्नालाजी का इस्तेमाल करें। रास्ते में कैसेट की रील उलझी पड़ी थी। अचानक एक आदमी वहां रुका और वहां से जा रहे लोगों से बोला- कोई नहीं जानता कि इस रील में कौन सा गाना या डायलाग है। क्योंकि यह एक उलझी हुई काले रंग की कोई रील है। काले रंग की भी नहीं, भूरे काले रंग की। इसे जब दुबारा समेट कर कैसेट में फिट कर दिया जाएगा तो यह बजने लगेगा। वरना यह बेकार की चीज हो गया है। मुझे लगा यह आदमी ठीक ही कह रहा है। जब तक आपने इस रील के गाने नहीं सुने, यह रास्ते में पड़ा हुआ फालतू की चीज है। कैसेट बजाते वक्त उलझ गया होगा। इसलिए किसी ने इसे फेंक दिया है। ठीक इसी तरह भगवान में जब गहरी भक्ति और साधना होगी तो मनुष्य की दुनिया ही बदल जाएगी। अन्यथा- लोग बहस करते रहेंगे कि पता नहीं भगवान हैं या नहीं। हालांकि मैंने सुना है कि जो भगवान को नहीं मानते, संकट पड़ने पर उनमें से कुछ लोग- भगवान को पुकारने लगते हैं। तो जब दूध को मथा जाएगा तभी मक्खन मिलेगा। अन्यथा मक्खन छिपा हुआ है और आप कह रहे हैं कि मक्खन कहां है। यह तो दूध है या दही है। दही को भी मथने पर मक्खन निकलता है। दूध की छाली को गर्म करने पर घी निकलता है। सिर्फ कहां है, कहां है कहने से तो काम नहीं चलेगा। दूध को मथना पड़ेगा। उसके लिए धैर्य और कौशल चाहिए। तब जाकर आपको मक्खन मिलेगा। तब जाकर आप जान पाएंगे कि मक्खन का असली स्वाद क्या होता है। ईश्वर ठीक वैसे ही हैं। उनके लिए निरंतर लगे रहना पड़ेगा। प्रार्थना करते रहना पड़ेगा। लगातार। बार- बार। आखिर ईश्वर ही तो सब कुछ हैं। सर्वं खल्विदं ब्रह्म।
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ध को मथना पड़ेगा। उसके लिए धैर्य और कौशल चाहिए। तब जाकर आपको मक्खन मिलेगा।
@ एकदम सही बात
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