चार तरह के लोग भजते हैं भगवान को
विनय बिहारी सिंह
गीता के सातवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि चार तरह के लोग उन्हें भजते हैं- अर्थार्थी, आर्त, जिग्यासु और ग्यानी। आइए क्रम से देखते हैं कि इसका अर्थ क्या है। अर्थार्थी यानी वह व्यक्ति जिसे धन चाहिए, संपत्ति चाहिए, ऐश्वर्य चाहिए नाम चाहिए यानी भोग- विलास चाहिए। वह भगवान से कहता रहता है- भगवान मुझे यह सामान दो, वह सामान दो। उसका कभी मन भर ही नहीं पाता। दूसरा है- आर्त। किसी दुख में पड़ा हुआ है, कोई रोग- व्याधि है और वह बेचैन है, छटपटा रहा है। वह भगवान को पुकारता रहता है कि प्रभु, मेरा अमुक रोग या अमुक बिगड़ी बना दीजिए। अब और बर्दाश्त नहीं होता। या कोई किसी विषम परिस्थित में पड़ गया है। चारो तरफ से दुष्ट लोगों से घिर गया है। उस कष्ट से निकलना चाहता है। वह भगवान को पुकारता है कि भगवान, मेरा कष्ट दूर कीजिए। तीसरा है जिग्यासु। जिग्यासु व्यक्ति जानना चाहता है कि भगवान कैसे हैं। उनका ऐश्वर्य क्या है। उन्हें कैसे जाना या देखा जा सकता है। वह इसके लिए तरह- तरह की पुस्तकें पढ़ता है, तरह- तरह के साधु- संतों से मिलता है। उसके भगवान को जानने की भूख होती है। और चौथा है- ग्यानी। ग्यानी भगवान को जानता है। वह नित नवीन आनंद में डूबा रहता है और भगवान, भगवान पुकारता रहता है। वह जानता है कि सब कुछ ईश्वर ही हैं। सर्वं ब्रह्ममयं जगत। तो इसके कारण वह दिन- रात प्रभु का स्मरण करता रहता है। प्रभु के बिना उसका काम चल ही नहीं सकता। भगवान कृष्ण ने कहा है कि ऐसे ग्यानी उन्हें सबसे ज्यादा प्रिय हैं। जब इस बात का ग्यान हो जाए कि भगवान ही सबकुछ हैं, मनुष्य कुछ भी नहीं तो फिर भगवान उस व्यक्ति पर क्यों नहीं कृपा करेंगे। लेकिन बार- बार पढ़ने के बाद, सुनने के बाद भी अनेक लोग यह मानते रहते हैं कि जो कुछ किया, उन्होंने किया। वे अपनी अंतरात्मा से यह मान ही नहीं पाते कि ईश्वर सर्वशक्तिमान हैं, सर्वव्यापी हैं और सर्वग्याता है। वेदांत ने यूं ही नहीं कहा है- जगत मिथ्या, ईश्वर सत्य।
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