Thursday, September 9, 2010

या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता

विनय बिहारी सिंह


मां के रूप में भगवान की पूजा बहुत ही मधुर है। मां दुर्गा या काली या सरस्वती के रूप में उनकी पूजा करने वाले भक्तों का कहना है कि मां अपनी संतान को दिल से प्यार करती है। वह उनकी कमियों को सुधारती है, उन्हें अच्छा से अच्छा और पौष्टिक भोजन देती है और उनके बहुमुखी विकास का रास्ता साफ कर देती है। कहा भी गया है- या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता। इसके बाद या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता........ नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः। वे ही माता हैं और वे ही शक्ति हैं। वे ही सब कुछ हैं। उनके अलावा और कोई है ही नहीं। माता की पूजा में भी विशेष आयोजन की जरूरत नहीं पड़ती। जो भी फल- फूल, अक्षत- रोली आप चढ़ाते हैं, वह उसे प्रसन्नता से ग्रहण करती हैं और आपको अनंतगुना आशीर्वाद देती हैं। कुछ नहीं तो उन्हें धूप- दीप दिखाइए और उनका ध्यान ही कर लीजिए। बस, वे इसी से प्रसन्न हो जाती हैं। उन्हें यह अच्छा लगता है कि उनकी संतान उन्हें याद करती है, उन्हें चाहती है। कहा जाता है कि माता के रूप में ईश्वर की पूजा करने से मनुष्य में धन, जन और वैभव की शक्ति आती है और सफलता का रास्ता खुलता जाता है। लेकिन जो लोग उन्हें पिता के रूप में देखते हैं या पूजा करते हैं, वे भी सौभाग्यशाली हैं।

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