Thursday, November 27, 2008

भगवान शिव हैं कृपा निधान



विनय बिहारी सिंह
भगवान शिव या शंकर या महेश्वर या देवाधिदेव आशुतोष कृपा निधान हैं। समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष निकला तो उसका ताप इतना तीव्र था कि कोई वहां खड़ा नहीं हो सकता था। मानो पूरे ब्रह्मांड में आग लग गई हो। देवता भागे भागे भगवान शंकर के पास पहुंचे और कहा- भगवन, किसी तरह हमारी रक्छा कीजिए वरना पूरी सृष्टि जल कर राख हो जाएगी। समुद्र मंथन में जो विष निकला है, उसे आप ही धारण कर सकते हैं। कृपा सिंधु शंकर भगवान ने उस भयंकर विष को पी लिया और अपने गले में ही रख लिया। इसी के कारण उनका काम नीलकंठ पड़ गया। उन्होंने विष को गले से नीचे नहीं उतारा। ऐसा कौन कर सकता है? जो ब्रह्मांड का नियंत्रक हो। वेदों ने ब्रम्ह कहा है, पुराण ने जिन्हें विष्णु कहा है उसे ही शैव लोगों ने शिव कहा है। दूसरा उदाहरण- जब भगीरथ गंगा को धरती पर ले आए तो गंगा का वेग इतना प्रबल था कि समूची पृथ्वी तहस नहस हो जाती। तब भगीरथ ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि प्रभु गंगा का वेग आप ही कम कर सकते हैं। तब भगवान शिव ने अपनी जटा में गंगा को रोक लिया। इसीलिए गंगा को पवित्र नदी का दर्जा दिया जाता है। भगवान शंकर साधु चरित्र वाले मनुष्यों की रक्छा करते हुए, हमेशा ध्यान मग्न और प्रसन्नचित्त रहते हैं। बस उनका ध्यान करना चाहिए।