बगलामुखी का बीज मंत्र है ह्लींग मात्र मंत्र ही नहीं हैं ये एक ब्रह्मा मंत्र है, ये एक ब्रह्मा स्थिति है, क्योंकि इसके गुन्जरनसे मनुष्य के अभामंडलका रंग सुनहरा हो जाता है और जिस व्यक्ति का अभामंडल अधिक सुनहरा होता है, वह मनुष्य उतना हीं अधिक स्वास्थ्य होता हैं।
जिस प्रकार 50साल पहले का विज्ञान अभामंडलके विज्ञान को नहीं मानता था और आज के विज्ञान ने अभामंडलके अस्तित्व को स्वीकार लिया है, ठीक उसी प्रकार मनुष्य का एक सूक्ष्म अभामंडलहोता है। मनुष्य के अभामंडलकी एक सीमा होती है परंतु सूक्ष्म अभामंडलकी कोई सीमा नहीं होती। हमलोगों ने अपने भगवान को अपने इष्ट को भी स्वर्णिम आभायुक्तदेखा है यानी भगवान भी स्वर्णिम आभायुक्तहै और जब हम गहन ध्यान में उतरकर अपने इस पितवर्णीयआभामंडलका विस्तार करते है तो ये सूक्ष्म आभामंडलसीधे हमारे इष्ट तक पहुंच जाते है।
विज्ञान कहता है कि जब हम पांच मिनट के पहले के शब्द को पकड सकते है तो पचास मिनट के पहले के शब्द को भी पकडा जा सकता है व कुछ और प्रयास किया जाय तो पचास साल के पहले के शब्दों को भी पकडा जा सकता हैं। यानी कि हम गीता को भी उसकी मूल ध्वनि में जो कि कृष्ण के द्वारा उच्चारित थी वापिस उस गीता को भी कृष्ण की मूल आवाज में सूना जा सकता हैं। ठीक उसी प्रकार जब हम सूर्य के मंत्र का उच्चारण करते है तो उसकी ध्वनि तरंगें सूर्य से टकराती है और वापिस लौटती है यह वहीं लौटती है जहां से वे तरंगें प्रेषित कि गई थी और वापस लौटने में उन तरंगों में सूर्य की तेजस्वी, ओज और सूर्य का आशीर्वाद समाहित हो जाता है।
जो साधक बगलामुखीपीतांबराका ध्यान करता है उसका आभामंडलभी पीत वर्णीयहो जाता है व मुखमंडल में सौम्यता आ जाती है। प्रत्येक साधक को प्रार्थना करने के तुरंत बाद थोडी देर शांत भाव से उसी स्थान पर बैठे रहना चाहिए जिससे उस प्रार्थना की तरंगें आपके ऊपर गिरने शुरू हो जाए, ठीक उसी भांति जब आपका सूक्ष्म आभामंडलजब आपके इष्ट के आभामंडलसे संपर्क साधता है तो आप सीधे-सीधे अपने इष्ट से जुड जाते हैं और ऐसे स्थिति में कि गई साधना, किया गया ध्यान तुरंत फलदायीहोता हैं। [स्वामी आशुतोष आनंद जी]
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