Wednesday, November 19, 2008

वैदिक विद्याओं के संपादक : महर्षि वेदव्यास

महर्षि वेदव्यासभगवान विष्णु के कालावतारमाने गए हैं। कलियुग में पाप के प्रबल और पुण्य के क्षीण होने से मनुष्य की आयु, बौद्धिक प्रतिभा एवं आध्यात्मिक शक्ति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पडा है। आज संपूर्ण वैदिक ज्ञान रखने वाले पृथ्वी पर दुर्लभ हो गए हैं। वैदिक यज्ञों-अनुष्ठानों का लोप होता जा रहा है। सर्वज्ञ भगवान से यह बात छिपी नहीं थी, अत:जीवों के कल्याण के लिए स्वयं श्रीहरिद्वापरयुगके अंतिम चरण में ब्रह्मर्षि वशिष्ठ के पौत्र महर्षि पराशरके अंश से कैवर्तराजकी पोष्यपुत्रीसत्यवती के गर्भ द्वारा महर्षि व्यास के रूप में अवतरित हुए।
व्यासजीका जन्म द्वीप में होने से इनका नाम द्वैपायन पडा। श्यामवर्ण का शरीर होने से ये कृष्णद्वैपायन कहलाए। जन्म लेते ही इन्होंने अपनी माता से जंगल में जाकर तपस्या करने की इच्छा प्रकट की। प्रारंभ में इनकी माता ने इन्हें रोकने का बहुत प्रयास किया, किन्तु अन्त में माता के स्मरण करते ही तत्काल उनके पास आने का वचन देकर इन्होंने माँ की अनुमति प्राप्त कर ली। ये तप करने के लिए हिमालय चले गए और वहाँ नर-नारायण की साधनास्थलीबदरीवनमें तपस्या की। इससे इनकी बादरायण नाम से प्रसिद्धि हो गई।
महर्षि व्यास अलौकिक शक्ति-संपन्न महाविद्वानहैं। लोगों को आलसी, अल्पायु, मंदमतिऔर पापरतदेखकर इन्होंने वेद का विभाजन किया। मनुष्यों की धारणा-शक्ति को कमजोर होते देख व्यासजीने वेद को ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद-इनचार भागों में विभाजित किया और एक-एक वैदिक संहिता अपने चार प्रमुख शिष्यों को पढाई। उन्होंने पैलको ऋग्वेद, वैशम्पायनको यजुर्वेद, जैमिनिको सामवेद तथा सुमन्तुको अथर्ववेदका संपूर्ण अध्ययन कराया। तत्पश्चात प्रत्येक संहिता की फिर अनेक शाखा-प्रशाखाएं हुई। इस प्रकार इन्हीं के द्वारा वैदिक वाङ्गमयका सम्पादन और विस्तार हुआ। व्यास का शाब्दिक अर्थ है विस्तार। वेदों का विस्तार इनके माध्यम से होने के कारण इनका नाम वेदव्यास पडा, जो कि इनके अन्य नामों की अपेक्षा सर्वाधिक लोकप्रिय भी है। समाज का कोई भी वर्ग वैदिक विद्याओं के ज्ञान से वंचित न रहे, इसलिए महर्षि वेदव्यासने महाभारत की रचना की। कहा जाता है कि स्वयं भगवान गणेश ने इस महान ग्रंथ को लिपिबद्ध किया था। इनके द्वारा प्रणीत महाभारत को मनीषी पंचम वेद मानते हैं। श्रीमद्भगवद्गीताइस महाभारत का ही अंश है। व्यासजीने महाभारत को सर्वप्रथम अपने पांचवें प्रमुख शिष्य लोमहर्षणजीको पढाया था।
वेदान्त-दर्शन के साथ अनादि पुराण को लुप्त होते देखकर श्रीवेदव्यासने अट्ठारह पुराणों का प्रणयन किया। उपनिषदों का सार-तत्व समझाने के लिए इन्होंने ब्रह्मसूत्र का निर्माण किया, जिनपर शंकराचार्य, वल्लभाचार्यआदि अनेक महाविद्वानोंने भाष्य-रचना कर अपना-अपना अलग मत स्थापित किया। व्यास-स्मृति के नाम से रचा हुआ इनका एक स्मृतिग्रंथभी उपलब्ध होता है। इस प्रकार भारतीय वाङ्गमयएवं हिन्दू संस्कृति पर वेदव्यासजीका बहुत बडा ऋण है। ये श्रुति-स्मृति-इतिहास-पुराण के प्रधान व्याख्याता हैं। सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार में इनका विशिष्ट योगदान है। व्यास-जन्मतिथि आषाढी पूर्णिमा गुरुपूर्णिमा के रूप में महापर्वबन गई है, जिसे प्रतिवर्ष अत्यंत श्रद्धा एवं उत्साह के साथ सनातन धर्मावलम्बी मनाते हैं। गुरु-शिष्य परम्परा को सुदृढ बनाने के उद्देश्य से व्यास-पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।
संसार को श्रीमद्भगवद्गीताजैसा अनुपम आध्यात्मिक रत्न श्रीवेदव्यासकी कृपा से ही प्राप्त हुआ। इन्होंने ही भगवान श्रीकृष्ण के उस अमर उपदेश को अपनी महाभारत में ग्रंथित कर उसे संपूर्ण विश्व के लिए सुलभ बना दिया। प्राणियों के कल्याण की कामना से भक्ति-रस के सागर को महर्षि व्यास ने श्रीमद्भागवत महापुराणके 18हजार श्लोकों में बांध दिया है।
दिव्य तेज, असीम शक्ति एवं असाधारण गुणों से संपन्न महर्षि व्यास को मनीषियोंने त्रिदेवोंकी समकक्षताप्रदान की है-
अचतुर्वदनोब्रह्मा द्विबाहुपरोहरि:।
अभाललोचन:शम्भुर्भगवान्बदरायण:॥
श्रीव्यासदेव चतुर्मुख न होते हुए भी ब्रह्मा, दो भुजाओं वाले होते हुए भी दूसरे विष्णु तथा त्रिनेत्रधारीन होने पर भी साक्षात् शिव ही हैं।
इसीलिए इनकी स्तुति में यह कहा गया है-
नमोऽस्तुतेव्यास विशालबुद्धे
फुल्लारविन्दायतपत्रनेत्र।
येन त्वयाभारततैलपूर्ण:
प्रज्वालितो ज्ञानमय: प्रदीप:॥
खिले हुए कमल की पंखुडी के समान बडे-बडे नेत्रों वाले महाबुद्धिमानव्यासदेव!आपने अपने महाभारतरूपीतेल के द्वारा दिव्य ज्ञानमय दीपक को प्रकाशित किया है, आपको नमस्कार है।
वस्तुत:वेद भारतीय संस्कृति के प्राण हैं। भारतीय धर्म, दर्शन, अध्यात्म, आचार-विचार, रीति-नीति, विज्ञान-कला आदि सभी कुछ वेद से ही अनुप्राणित है। हमारे जीवन और साहित्य की ऐसी कोई विधा नहीं है, जिसका बीज वेद में न मिले। सही मायनों में वेद हमारी सभ्यता की आधारभूमिहै। महर्षि वेदव्यासने वेद के विभाजन का युगान्तकारीकार्य करके इस अथाह ज्ञान-राशि को लोकहित में संपादित कर दिया। महाभारत के माध्यम से वेदांशसमाज के सभी वर्गो तक पहुँचाया। ऐसे अवतारीमहापुरुष का अवतरण-दिवस सबके लिए गुरु पूर्णिमा के रूप में सत्प्रेरणाका महापर्वबन गया है।