Tuesday, November 11, 2008

श्रद्धा व रोमांच से भरपूर अमरनाथ यात्रा


श्रद्धा व रोमांच से भरपूर अमरनाथ यात्रा से हर वर्ष लाखों श्रद्धालु सम्मोहित होते हैं और कठिन सफर तय करके हिमलिंगके दर्शन से खुद को धन्य महसूस करते हैं। बर्फीली हवाएं, तंग रास्ते, थका देने वाली उतराई-चढाई और सबसे बढकर आतंकवादियों की धमकियां भी श्रद्धालुओं की राह नहीं रोक पाती और आषाढ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षा बंधन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवित्र हिमलिंगदर्शन के लिए देश-विदेश से श्रद्धालुओं की भीड उमडी रहती है।
श्रीनगर के उत्तर-पूर्व में 135किलोमीटर दूर समुद्रतल से 13,600फुट की ऊंचाई पर स्थित अमरनाथ गुफाभगवान शिव के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। यहां की प्रमुख विशेषता पवित्र गुफामें बर्फ से प्रकृतिक शिवलिंगका निर्मित होना है। यहां से करीब 3000फुट की ऊंचाई पर है, पर्वत की चोटी। गुफाकी परिधि अंदाजन डेढ सौ फुट होगी। भीतर का स्थान कमोबेश चालीस फुट में फैला है और इसमें ऊपर से बर्फ के पानी की बूंदे जगह-जगह टपकती रहती हैं। यहीं पर एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूंदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंगबनता है। चन्द्रमा के घटने-बढने के साथ-साथ इस बर्फ का आकार भी घटता-बढता रहता है। श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है।
आश्चर्य की बात यही है कि यह शिवलिंगठोस बर्फ का बना होता है, जबकि गुफामें आमतौर पर कच्ची बर्फ ही होती है जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाए। मूल अमरनाथ शिवलिंगसे कई फुट दूर-दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही हिमखंड हैं। जनश्रुतिप्रचलित है कि इसी गुफामें माता पार्वती को भगवान शिव ने अमरकथासुनाई थी, जिसे सुनकर सद्योजात शुक-शिशु शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गया था। गुफामें आज भी श्रद्धालुओं को कबूतरों का एक जोडा दिखाई दे जाता है, जिन्हें श्रद्धालु अमर पक्षी बताते हैं। वे भी अमरकथासुनकर अमर हुए हैं। ऐसी मान्यता भी है कि जिन श्रद्धालुओं को कबूतरों को जोडा दिखाई देता है, उन्हें शिव पार्वती अपने प्रत्यक्ष दर्शनों से निहाल करके उस प्राणी को मुक्ति प्रदान करते हैं।
यह भी माना जाता है कि भगवान शिव ने अद्र्धागिनी पार्वती को इस गुफामें एक ऐसी कथा सुनाई थी, जिसमें अमरनाथ की यात्रा और उसके मार्ग में आने वाले अनेक स्थलों का वर्णन था। यह कथा कालांतर में अमरकथा नाम से विख्यात हुई। कुछ विद्वानों का मत है कि भगवान शंकर जब पार्वती को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने छोटे-छोटे अनंत नागों को अनंतनाग में छोडा, माथे के चंदन को चंदनबाडीमें उतारा, अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोडा था। ये तमाम स्थल अब भी अमरनाथ यात्रा में आते हैं।
अमरनाथ गुफाका सबसे पहले पता सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाधमें एक मुसलमान गडरिएको चला था। आज भी चौथाई चढावा उस मुसलमान गडरिएके वंशजों को मिलता है। आश्चर्य की बात यह है कि अमरनाथ गुफाएक नहीं है। अमरावती नदी के पथ पर आगे बढते समय और भी कई छोटी-बडी गुफाएंदिखती हैं। वे सभी बर्फ से ढकी हैं। अमर नाथ यात्रा पर जाने के भी दो रास्ते हैं। एक पहलगामहोकर और दूसरा सोनमर्गबालटालसे लेकिन सुविधाजनक रास्ता पहलगामका ही है। पहलगामएक विख्यात पर्यटन स्थल भी है और यहां का नैसर्गिक सौंदर्य देखते ही बनता है। पहलगामके बाद पहला पडाव चंदनबाडीहै, जो पहलगामसे आठ किलोमीटर की दूरी पर है। लिद्दरनदी के किनारे-किनारे पहले चरण की यह यात्रा ज्यादा कठिन नहीं है। चंदनबाडीसे आगे इसी नदी पर बर्फ का यह पुल सलामत रहता है। चंदनबाडीसे 14किलोमीटर दूर शेषनाग में अगला पडाव है। यह मार्ग खडी चढाई वाला और खतरनाक है। यहीं पर पिस्सू घाटी के दर्शन होते हैं। अमरनाथ यात्रा में पिस्सू घाटी काफी जोखिम भरा स्थल है।
पिस्सू घाटी समुद्रतल से 11,120फुट की ऊंचाई पर है। यात्री शेषनाग पहुंच कर ताजादम होते हैं। यहां पर्वतमालाओं के बीच नीले पानी की खूबसूरत झील है। इस झील में झांककर यह भ्रम हो उठता है कि कहीं आसमान तो इस झील में नहीं उतर आया। यह झील करीब डेढ किलोमीटर लम्बाई में फैली है। किंवदंतियोंके मुताबिक इस झील में शेषनाग का वास है और चौबीस घंटों के अंदर शेषनाग एक बार झील के बाहर दर्शन देते हैं, लेकिन यह दर्शन खुशनसीबों को ही नसीब होते हैं।
शेषनाग से पंचतरणीआठ मील के फासले पर है। मार्ग में बैववैल टॉप और महागुणास टॉप पार करने पडते हैं, जिनकी समुद्रतल से ऊंचाई क्रमश:13,500फुट व 14,500फुट है। महागुणासचोटी से पंचतरणी तक का सारा रास्ता उतराई का है। यहां पांच छोटी-छोटी सरिताएं बहने के कारण ही इस स्थल का नाम पंचतरणी पडा है। यह स्थान चारों तरफ से पहाडों की ऊंची-ऊंची चोटियोंसे ढका है। अमरनाथ की गुफायहां से केवल आठ किलोमीटर दूर रह जाती हैं और रास्ते में बर्फ ही बर्फ जमी रहती है। यह रास्ता काफी कठिन है, लेकिन अमरनाथ की पवित्र गुफामें पहुंचते ही सफर की सारी थकान पल भर में छू-मंतर हो जाती है और अद्भुत आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है।