Thursday, October 27, 2011

दीपावली

विनय बिहारी सिंह



उम्मीद है आप सबकी दीपावली अच्छी बीती होगी। आप सबके जीवन में सुख और समृद्धि लगातार बढ़ती जाए। मां लक्ष्मी आपके ऊपर सदा कृपालु बनी रहें।
आज आफिस आ रहा था तो एक व्यक्ति की बात मेरे कानों में पड़ी। उसकी पीड़ा थी कि दीपावली प्रकाश का त्यौहार न हो कर अब शोरगुल का त्यौहार बन गया है। पश्चिम बंगाल में दीपावली को कालीपूजा के रूप में मनाते हैं। सार्वजनिक रूप से भी और व्यक्तिगत रूप से भी लोग मां काली की मूर्ति अस्थाई रूप से स्थापित करते हैं और विधिवत पूजा- अर्चना करते हैं। पूजा के समय ढाक बजता है। ढाक कैसा होता है, यह पश्चिम बंगाल के बाहर रहने वाले लोग शायद न समझ पाएं। इसलिए संक्षेप में इसकी चर्चा जरूरी है। एक बहुत बड़े ड्रम (वाद्य यंत्र) जैसा होता है ढाक। बीच में ढोलक जैसा कर्व। लेकिन ढोलक में एक तरफ का हिस्सा कुछ कम गोलाई लिए होता है। ढाक में दोनों तरफ के गोल हिस्से एक जैसे होते हैं। लेकिन चूंकि यह भारी होता है इसलिए इसे एक तरफ से ही बजाया जाता है। दोनों हाथों में दो लकड़ियों को पकड़ कर- ढम ढमा ढम बजाया जाता है। ढाक बजाने वाला एक नियत फीस लेकर दो या तीन दिन तक आपके पंडाल में ढाक बजाता है।
मेरे कैंपस में भी काली पूजा हो रही है। आधी रात के बाद भी ढाक बजता रहा और असंख्य पटाखे बजते रहे। कितना पैसा खर्च हुआ होगा? सोच कर चकित होता हूं। सारा कैंपस धुआं से भर गया था। प्रदूषण की हद टूट गई थी। लेकिन काफी तेज आवाज वाले पटाखे बजाने वालों का मन नहीं भर रहा था। बम जैसी आवाज वाले पटाखे लगातार ध्वनि और वायु प्रदूषण बढ़ाते जा रहे थे। हम सब कब इसके प्रति सचेत होंगे, भगवान जाने। सभी तो पढ़े- लिखे हैं। किसे क्या कहें? ऊपर से मां काली की मूर्ति के पास लाउडस्पीकर पर फिल्मी गाने बजाए जा रहे थे। बाद में किसी का ध्यान गया तो वहां मां काली की अराधना वाले गीत बजने लगे। मुझे उस व्यक्ति की पीड़ा का अहसास हुआ जो दीपावली को प्रकाश का नहीं ध्वनि प्रदूषण का पर्व बनता देख कर दुखी था।
यदि यह मां काली की पूजा है तो इसमें शोर का स्थान तो कहीं दिखता नहीं। मां काली की पूजा रात्रि के अंधकार में शांति में होती है। मां काली का रंग प्रतीकात्मक रूप से इसलिए काला दिखाया जाता है क्योंकि वे अंधेरे में प्रकाश स्वरूप हैं। तब फिर काली क्यों हैं? क्योंकि वे भक्तों को सहज नहीं दिखतीं। गहरे ध्यान के बाद प्रकट होती हैं। वे काली हैं यानी काल की स्वामिनी। ऐसी मां काली को असंख्य बार नमन। हे मां काली- सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया।।

1 comment:

संगीता पुरी said...

त्‍यौहार के महत्‍व के बारे में किसी को पता ही नहीं आज ...