Tuesday, October 4, 2011

दुर्गा यानी प्रेम और सुरक्षा का दुर्ग

विनय बिहारी सिंह



दुर्गा यानी ऐसी जगन्माता जो हमें प्रेम और सुरक्षा के दुर्ग में रखती हैं। जगन्माता के दुर्ग में जो रहता है उसका बाल बांका नहीं होता। तो कौन रहता है मां के दुर्ग में? जो उनका भक्त हो। रामकृष्ण परमहंस के एक शिष्य कहा करते थे- दुर्गा दुर्गा नाम जपूं तो डर किस बात का? वे भवभय हारिणी हैं। उनका एक नाम दुर्गतिनाशिनी है। मां दुर्गा के दस हाथ हैं। उनमें विभिन्न अस्त्र- शस्त्र हैं। लेकिन एक हाथ आशीर्वाद देता हुआ है, अपने भक्तों को अभय दान देता हुआ। वे अपने भक्तों को दुर्गति से बचाती हैं। यानी उनके भक्त पर कोई संकट आने वाला होगा तो वे संकट को ही नष्ट कर देती हैं। वे भक्तों को विपत्तियों से बचा लेती हैं। कौन मां होगी जो अपने बच्चे को कष्ट में देखना चाहेगी? यही बात मां दुर्गा के साथ है। कई महीने पहले मैं मां दुर्गा के एक भक्त से मिला था। उनकी आंखों में माता के प्रति भक्ति स्पष्ट नजर आ रही थी। उन्हें कुछ खाने को मिलता था तो वे कहते थे- मां आज तुम यह दे रही हो। ठीक है, तब यही खाने में मेरी भलाई है। खाने से पहले वे मां दुर्गा को भोजन चढ़ाते थे। आंखें बंद कर उसे मन ही मन अर्पित करते थे और तब कहते थे- मेरे भीतर जो दुर्गा मां हैं, उन्हीं को यह भोजन समर्पित है। मां दुर्गा के ऐसे भक्त दुर्लभ हैं। वे यह मानते हैं कि जीवन में जो कुछ भी हो रहा है सब मां दुर्गा की कृपा से हो रहा है और इसका कोई न कोई उद्देश्य है। वे कहते हैं- अगर मुझे किसी ने मिठाई खाने को दी तो यह बिना मां की इच्छा के संभव नहीं है। अगर किसी ने मुझे कोई सुविधा दी तो वह भी मां की कृपा से हुआ। इस तरह वे मां दुर्गा के दुर्ग में रहते हैं। वे कहते हैं- मेरी जगन्मता भवभयहारिणी हैं। फिर मैं क्यों डरूं? मेरे जीवन में सब ठीक हो जाएगा।

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