Wednesday, October 5, 2011

नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः

विनय बिहारी सिंह






मेरे आवास के पास एक शिव मंदिर और कालीमंदिर है। वहां आज सुबह से देवी पाठ का सीडी बज रहा है- या देवी सर्व भूतेषु, मातृ रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः।..... सुबह से लेकर आफिस आने तक माता का पाठ सुनना अच्छा लग रहा था। मां दुर्गा मातृ रूप में, शक्ति रूप में, ग्यान रूप में या अन्य रूपों में हमारे जीवन का केंद्र हैं। यदि आप अपने बच्चे को मेधावी बनाना चाहते हैं तो मां सरस्वती, यदि धनवान बनाना चाहते हैं तो मां लक्ष्मी, यदि प्रेम का पात्र और शक्तिवान बनना चाहते हैं तो मां दुर्गा, यदि गहन साधना में जाना चाहते हैं तो मां काली की अराधना अच्छी है। तब आप पूछ सकते हैं कि मां के ये विभिन्न रूप क्यों? दरअसल मां के ही ये अलग अलग रूप हैं। मां तो एक ही हैं। बस उनकी लीलाओं के आधार पर अलग- अलग रूप बना दिए गए हैं। मां काली को तो काल की देवी कहा जाता है। उनके भक्तों से काल दूर भागता है। इसी तरह मां दुर्गा के भक्तों से भी काल दूर भागता है। मां सरस्वती और मां लक्ष्मी भी अपने भक्तों को अनोखे ढंग से बचाती हैं। इस पर एक भक्त ने कहा- क्यों कनफ्यूजन पैदा कर रहे हैं। किसी एक देवी के पूजा करने से ही सारा काम हो जाता है। तब वहां खड़े एक साधु ने कहा- नहीं। यह कनफ्यूजन नहीं है। भगवान एक हैं उनके रूप अलग अलग हैं। जैसे चीनी तो एक ही है। लेकिन मिठाइयां अलग- अलग हैं। ऐसे भक्तों की कमी नहीं है जो भगवान के विभिन्न रूपों की पूजा करना चाहते हैं। दरअसल भक्त भगवान या जगन्माता के अलग अलग रूपों में भक्ति कर आनंदित होता है। लेकिन अगर आपको कनफ्यूजन होता है तो किसी एक देवी पर टिके रहिए और मानिए कि बाकी सारे रूप उन्हीं के हैं। इस तरह आपको कनफ्यूजन भी नहीं होगा और सारा संसार आपको अपने इष्ट से आच्छादित लगेगा। बस मन किसी एक रूप पर केंद्रित हो जाए। वही रूप बाद में आपको निराकार भगवान की ओर ले जाएगा। अंत में सारे रूप फिर एक में मिल जाते हैं। आखिर ईश्वर तो एक ही हैं।

1 comment:

vandana gupta said...

यही अटल सत्य है कि ईश्वर तो एक ही है फिर चाहे जैसे पूजा जाये।