Monday, October 3, 2011

दुर्गोत्सव

विनय बिहारी सिंह



इन दिनों कोलकाता में दुर्गोत्सव चल रहा है। शाम को सड़कों और पंडालों में तो भारी भीड़ रहती ही है, ट्रेनों और बसों में भी खूब भीड़ होती है। युवा स्त्री- पुरुष और बच्चे अत्याधुनिक वस्त्रों में उत्साह और उत्सुकता से घूम- फिर रहे हैं। विभिन्न ढाबों में खा- पी रहे हैं। कोलकाता में दुर्गोत्सव पांच दिन चलता है। इस तरह पांच दिनों तक यही दृश्य रहेगा। पंडालों के पास सड़कों के किनारे दूर तक खाने- पीने के स्टाल लगे रहते हैं। घूमने वाले आते हैं और चाऊमिन, रोल, चाट, पैस्ट्री, पैटीज, पिजा, छोले- बठूरे, कचौरी- मीठी दाल और अन्य तरह के व्यंजन खूब चाव से खाते हैं और घूमने के लिए आगे बढ़ जाते हैं। इन घूमने वालों के घर रात का खाना नहीं बनता। वे घूमते हुए जब भूख लगती है तो कहीं किसी स्टाल पर रुकते हैं और अपनी मनपसंद की चीज खा- पी लेते हैं। पूरी रात वे घूम सकते हैं। कोई डर नहीं, कोई भय नहीं। मेट्रो ट्रेन आज के दिन यानी सप्तमी से तीन- चार दिनों के लिए दिन के दो बजे से शुरू हो कर रात भर चलती है। बाकी दिन सुबह साढ़े छह से मेट्रो ट्रेन शुरू होती है और रात के दस बजे के आसपास बंद हो जाती है। लेकिन सप्तमी को मेट्रो दिन के दो बजे शुरू होती है क्योंकि उसे रात भर चलना होता है। यहां के कुछ पंडालों को देख कर कोई भी अवाक हो सकता है। इतने खूबसूरत और कलात्मक पंडाल कि जिसका शब्दों में वर्णन मुश्किल है। इन्हीं में से एक अहिरीटोला दुर्गापूजा पंडाल है। यह पंडाल शीतला मंदिर के ठीक बगल में बनता है। पहले मेरा दफ्तर वहां हुआ करता था तो बिना कोशिश के ही वहां का अद्भुत पंडाल मैं देख लिया करता था। लेकिन अब दफ्तर वहां से दूर आ गया है।
लेकिन एक बात मुझे लगातार हांट करती है। जो लोग दुर्गोत्सव मनाते हैं क्या वे कभी एकांत में बैठ कर मां दुर्गा की हृदय से पूजा करते हैं? इनमें से कुछ लोग तो जरूरत करते होंगे। मां दुर्गा को करुणामयी कहा जाता है। वे करुणा की अनंत सागर हैं। उनके पास जो अपना दिल उड़ेल देता है, वह मां का अनंत प्यार पाता रहता है।

1 comment:

om said...

मैं अभी दिल्ली में हूँ , लेकिन आपका पोस्ट पढ के लगा मैं भी कलकता के "दुर्गोत्सव" में शामिल हूँ .
जय माता दी.