Sunday, February 8, 2009

पूतना वध

विनय बिहारी सिंह


जब कंस को लगा कि कृष्ण का वध मुश्किल है तो उसने बहुत ही मायावी मानी जाने वाली राक्षसी पूतना को बुलाया और कृष्ण वध का आदेश दिया। पूतना की तारीफ भी की। वह अद्भुत मायाविनी थी। कोई भी वेश धर सकती थी। जब सुंदर स्त्री का रूप धरती थी तो बड़े- बड़े बुद्धिमान उस उस पर मोहित हो जाते थे। जब वह मथुरा से गोकुल में गई तो उसने. गोपी का रूप बना लिया। उस समय उसके चेहरे पर अद्भुत प्यार छलक रहा था। उसने सबको मायावी जादू की गिरफ्त में ले लिया। कुछ संतों का तो कहना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने खुद ही सबका दिमाग लापरवाह बना दिया क्योंकि उन्हें पूतना क मौका देना था। तो पूतना ने कृष्ण को गोद में ले लिया और चुपके से पास के पहाड़ पर ले गई। उसने पहले से ही अपने स्तनों पर जहर लगा रखा था।
भगवान कृष्ण प्रेम से दूध पीने लगे। कथा है कि उन्होंने पूतना का
दूध तो पीया ही उसके साथ उसकी जीवनी शक्ति भी पी ली। कंस ने पूतना के मरने की खबर सुनी तो सन्न रह गया। उसने अपने करीबी मंत्रियों से कहा कि कृष्ण भी बहुत मायावी है। लेकिन उसकी माया की काट हमारे पास है। अनंत कोटि ब्रम्हांड के सावामी को भी उसने चुनौती दी। आखिरकार वह मारा गया। लेकिन पूतना को और कृष्ण को भी बैकुंठ धाम मिला। वजह? स्वयं भगवान के हातों ये दोनों मरकर बैकुंठ के अधिकारी हो गए। जिसके लिए बडे- बडे संत तरसते हैं। क्यों? भगवान कृपालु हैं। वे करुणा के सागर हैं। उन्हें चाहे मित्र के भाव से याद कीिजए या शत्रु के, वे आपको बहुत प्यार करते हैं। एसी करुणा कहां मिलेगी? यह लीला उन्होंने हम सबको सीख देने के लिए की। प्रेम का कोई विकल्प नहीं है। और प्रेम जितनी ताकत भी किसी चीज में नहीं है। बशर्ते वह प्पेम निस्वार्थ हो।