Saturday, February 21, 2009

शांति और आनंद के दाता शिव


विनय बिहारी सिंह

एक दिन बाद शिवरात्रि है। माना जाता है कि शिवरात्रि की रात जाग कर शिव जाप करने से वे प्रसन्न होते हैं। प्रसन्न हो कर क्या करेंगे। कहा जाता है- वे जीवन में शांति लाते हैं। हमें तनाव मुक्त करते हैं। शिव जी जिसको प्यार करते हैं, उसे किसी बात की चिंता करने की जरूरत नहीं। इसीलिए तो उन्हें औघड़ दानी कहते हैं। वे सिर्फ देना जानते हैं। देना और उद्धार करना। भगवान शिव तुरंत प्रसन्न होने वाले देवता हैं। वे ज्यादातर ध्यान मुद्रा में बैठे रहते हैं। लेकिन समूचे ब्रह्मांड की गतिविधियां उनकी जानकारी में रहती हैं। रामकृष्ण परमहंस ने कहा है कि पुराणों में जिन्हें कृष्ण कहा गया है, तंत्रों में उन्हें ही शिव कहा गया है। वही परमब्रह्म हैं। चाहे कृष्ण कहें या शिव, चाहे काली कहें या दुर्गा। वही सृष्टि करने वाले, उसका पोषण करने वाले और अंत में संहार करने वाले हैं। ऋषियों ने कहा है कि जो पैदा होता है वह खत्म भी होता है। लेकिन जो सनातन है, वह कभी खत्म नहीं होता। ईश्वर के अलावा सब कुछ तो नश्वर है। और शिव जी तो वीतरागी हैं। एक मृगछाला पहने, शरीर में भभूत लगाए और ध्यान में बैठे हैं। न उन्हें अच्छा खाना चाहिए और न कपड़ा। हां, अगर समुद्र मंथन में भयंकर विष निकलता है तो उसे पीने के लिए वे तैयार हो जाते हैं। इसीलिए उनका नाम नीलकंठ है। राजा भगीरथ जब स्वर्ग से गंगा नदी को धरती पर ले आए तो उन्हें चिंता हुई कि आखिर गंगा का वेग रुकेगा कैसे? कहीं पूरी पृथ्वी की आबादी बह न जाए। उन्होंने शंकर भगवान से प्रार्थना की। उन्होंने गंगा के प्रचंड वेग को अपनी जटाऔं में उलझा दिया। वेग शांत हो गया। तब गंगा नदी स्वाभाविक गति से धरती पर बहने लगीं। भगवान शंकर के ही पुत्र हैं गणेश भगवान। वे सिद्धि विनायक हैं। कोई भी काम करने से पहले हम सब कुछ मंगलमय हो, इसके लिए गणेश जी की पूजा करते हैं। इस महाशिवरात्रि में क्यों न हम कुछ देर शांति से बैठ कर भगवान शिव का ध्यान करें और अपना मंगल तो चाहें ही, सबके मंगल की भी कामना करें।