Thursday, January 22, 2009

रमण महर्षि

विनय बिहारी सिंह

तमिलनाडु में मदुरै से ३० मील दूर तिरुचुली में दिसंबर १८७९ में जन्मे रमण महर्षि ने पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर तिरुवन्नामलई में चले गए और वहीं गहन साथना की। वे तिरुवन्नामलई के पर्वतों को साक्षात भगवान शिव कहते थे। उन्होंने तिरुवन्नामलई की वीरुपाक्ष गुफा में अनेक वर्षों तक साधना की। रमण महर्षि के पास जो पांच मिनट भी बैठ जाता था, उसे गहरी शांति मिलती थी। यूरोप के एक लेखक पाल ब्रंटन ने उनकी ख्याति के बारे में सुना तो उनकी उत्सुकता बढ़ी। वे पहुंच गए रमण महर्षि के पास। वहां उनके साथ जो घटना घटी, उसने उनकी आंखें खोल दी। वे रात को एक मचान पर सोने की तैयारी कर रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि मचान पर एक जहरीला सांप चढ़ रहा है। उन्हें लगा कि आज उनकी मृत्यु निश्चित है। तभी रमण महर्षि का एक सेवक वहां आया औऱ सांप से आदमी की तरह बोला- ठहरो बेटा। यह अद्भुत घटना थी। सांप जहां का तहां रुक गया। सेवक ने सांप को प्यार से समझाया- ये हमारे मेहमान हैं। इनको डंस कर तुम क्या आश्रम की बदनामी करना चाहते हो? क्या बिगाड़ा है इन्होंने तुम्हारा? पुचकार कर सेवक ने कहा- आओ, नीचे उतर जाओ, पाल ब्रंटन साहब को सोने दो। और क्या गजब कि सांप ने आग्याकारी बच्चों की तरह बात मान ली और नीचे उतर गया। फिर सांप पहाड़ों की तरफ गया और गायब हो गया। पाल ब्रंटन के लिए यह चकित करने वाली घटना थी। उन्होंने आश्रम के सेवक से पूछा- आखिर तुमने यह चमत्कार किया कैसे? सेवक ने कहा- यह मैंने नहीं, रमण महर्षि ने चमत्कार किया। उनका कहना है कि जीव- जंतु किसी से भी अगर हम गहरे प्यार से बोलेंगे तो वह जरूर सुनेगा। लेकिन शर्त यह है कि आपका व्यक्तित्व सदा से प्यार की तरंगे फेंकने वाला हो। यह नहीं कि सांप देखा, तब प्यार की तरंग बनाने लगे। आपका समूचा व्यक्तित्व ही प्यार से ओतप्रोत होना चाहिए। तब कोई भी हिंसक जीव या जंतु आपकी बात टाल नहीं सकता। यह सुन कर पाल ब्रंटन, रमण महर्षि के दीवाने हो गए। उन्होंने उनके आश्रम में रह कर व्यापक शोध किया और रमण महर्षि पर जो किताब लिखी, वह विश्व प्रसिद्ध हो गई। उनकी लिखी किताबें- द सेक्रेट पाथ, सर्च इन सेक्रेट इंडिया और अ मैसेज फ्राम अरुणाचला आज भी लोकप्रिय हैं।