विनय बिहारी सिंह
यूरोप के दार्शनिक और अध्यात्मवादी एंड्रू कोहन का कहना है कि जहां द्वैत है, वहीं द्वंद्व है। यानी जहां दो चीजें हैं, वहीं टकराव और तनाव है। इसे जरा और विस्तार से समझें। दो चीजें यानी- सुख- दुख या हानि- लाभ, रात- दिन या शत्रु- मित्र। उनका कहना है कि सब कुछ तो ईश्वर ही है। एंड्रू कोहन की विचारधारा वही है जो रामकृष्ण परमहंस की थी। यानी अद्वैतवाद। प्रत्येक मनुष्य की उत्पत्ति ईश्वर से हुई है, वह ईश्वर में ही रह रहा है और उसका विलय ईश्वर में ही होगा। यही बात हर वस्तु पर भी लागू होती है, चाहे वह सजीव हो या निर्जीव। अगर यह कहें कि निर्जीव वस्तु कैसे ईश्वर से आई है तो इसका उत्तर यह होगा कि जितनी भी चीजें हमें दिखाई देती हैं- वे सभी ईश्वर ने ही निर्मित की हैं। अब आप पूछेंगे कि तो फिर जो चीजें नहीं दिखाई देतीं वे किसने बनाई हैं- जैसे हवा, हमारा मन, हमारी भावनाएं। ये सब तो दिखाई नहीं देतीं। तो इन्हें किसने बनाया है? इसका भी जवाब वही होगा- ईश्वर ने ही इन्हें भी बनाया है। तो ईश्वर ने क्या- क्या बनाया है? इसका उत्तर है- समूचा ब्रह्मांड ही ईश्वर ने बनाया है। जब संपूर्ण ब्रह्मांड ईश्वर ने बनाया है तो जाहिर है ब्रह्मांड की सभी वस्तुएं भी ईश्वर ने ही बनाई हैं। अब आइए बात करें परमहंस योगानंद जी की। सन १९२० से लेकर १९५२ तक यूरोप में योग की उन्होंने वैग्यानिक व्याख्या की और योग के प्रति प्रबल आकर्षण पैदा किया। परमहंस जी कहते थे- ईश्वर के पास ब्रह्मांड की समस्त वस्तुएं हैं लेकिन एक चीज वह हमेशा खोजता है, वह है- मनुष्य का प्यार। जब कोई उन्हें सच्चे मन से प्यार करता है तो वे उसके पास दौड़े चले आते हैं। यानी ईश्वर भी हमसे कुछ खोजते हैं। वे हमें बार- बार कहते हैं- मेरे बच्चों, एक बार मेरे पास आओ। लेकिन हम कहते हैं- नहीं, अभी नहीं। अभी तो हमें अपना कैरियर बनाना है, बच्चे को नौकरी दिलानी है। या बेटी की शादी करनी है। अभी नहीं। जब सब कर लूंगा तो भगवन तुम्हें प्यार करूंगा। लेकिन मान लीजिए भगवान भी कह दें- ठीक है तो फिर मेरे पास भी तुम्हारे लिए समय नहीं है। तब? तब तो हमारा जीवन ही समाप्त हो जाएगा। लेकिन भगवान अत्यंत दयालु हैं। वे ऐसा नहीं करते। वे कहते हैं- ठीक है मेरे बच्चे मैं हमेशा तुम्हारे प्यार की प्रतीक्षा करूंगा। सचमुच सबकुछ ईश्वर से ही आया है औऱ ईश्वर में ही विलीन हो जाएगा। फिर भी हम ईश्वर को तभी याद करते हैं जब दुख या तकलीफ में होते हैं। सुख में उनको कौन याद करता है। क्यों न हम भगवान को ईश्वर को रोज याद करें। कम से कम सोते समय या जागते समय। ईश्वर इसी से प्रसन्न हो जाएंगे। रामकृष्ण परमहंस ने कहा है- मनुष्य का जन्म ही ईश्वर को पाने के लिए हुआ है। वरना खाना, शौच करना, सोना औऱ बच्चे पैदा करना तो पशुओं को भी अच्छी तरह आता है। फिर मनुष्य और पशु में अंतर ही क्या रह जाएगा?
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