Tuesday, January 13, 2009

बुरा सोचना भी क्यों घातक है?

विनय बिहारी सिंह

गांधी जी के तीन बंदर अब भी कई लोगों को याद होंगे। एक बंदर कान बंद करके बैठा है। यानी- बुरा मत सुनो। दूसरा मुंह बंद करके बैठा है। यानी- बुरा मत कहो। और तीसरा बंदर आंख बंद करके बैठा है। यानी- बुरा मत देखो। एक जमाने में गांधी जी के तीन बंदर बच्चों में खूब लोकप्रिय थे।
तो बुरा सोचना कैसे घातक है? सोचने से क्या कोई असर पड़ता है? जवाब है- हां। जैसा आप सोचते हैं, वह लौट कर फिर आप के ही पास आता है। मान लीजिए आपने किसी के प्रति सोचा कि वह मर क्यों नहीं जाता। तो आप पाएंगे कि कुछ दिनों बाद आपकी तबियत खराब हो गई है। वह सोचना उल्टे आप पर ही पड़ गया। इसीलिए संन्यासियों ने कहा है कि किसी के बारे में आप बुरा न सोचें। आप जिसके बारे में सोचेंगे उसका तो अहित नहीं होगा, बल्कि आपका ही अहित हो जाएगा। हमारा सोचने और बोलने के स्पंदन वायुमंडल में हमेशा मौजूद रहता है। कई साधु तो यह भी कहते हैं कि अगर आप अपने गलत सोचे हुए को काटना चाहते हैं तो ईश्वर से प्रार्थना कीजिए- हे प्रभु, अब मैं किसी का बुरा नहीं सोचूंगा। मुझे क्षमा कीजिए। अगर आप दिल से कहेंगे तो यह प्रार्थना भारी असरदार होगी।
सुनने में यह बात आपको विचित्र लग सकती है। लेकिन वैग्यानिक रूप से यह बात सच है। अनेक लोग इसको आजमा चुके हैं। आप भी अगर अपने जीवन में घटने वाली घटनाओं पर गौर करें तो आपको महसूस होने लगेगा।
इसके अलावा आपने अगर किसी के बारे में बुरे शब्दों का इस्तेमाल किया तो वह वायुमंडल के ईथर में गूंजता रहेगा। ठीक उसी तरह जैसे किसी रेडियो से प्रसारित कोई बात या संगीत वायुमंडल में रहती है और ज्योंही रेडियो से आप इसे ट्यून करते हैं यह आवाज जोर- जोर से आपको सुनाई देने लगती है। चूंकि रेडियो एक वैग्यानिक सूत्र के आधार पर तैयार किया गया है, इसलिए आप उससे कहीं भी प्रसारित होने वाली बातें या संगीत सुन लेते हैं। लेकिन आपके शरीर का रेडियो उतना विकसित नहीं है। इसलिए वायुमंडल में सूक्ष्म रूप से मौजूद हमारे विचार हम महसूस नहीं कर पाते। लेकिन ऋषि- मुनियों का सूक्ष्म रेडियो काफी पुष्ट था। हजारो मील दूर होने वाली बातचीत वे तुरंत सुन लेते थे। बिना किसी यंत्र के। अपनी साधना से वे इतने उच्च स्तर पर पहुंचे होते थे कि उनका कोई शिष्य भी हजारों मील दूर क्या सोच रहा है, वे जान लेते थे। उनका दर्शन करने वाला आदमी क्या सोच रहा है, यह भी वे जान लेते थे।
इसीलिए हमें किसी का बुरा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने जीवन में और ज्यादा अच्छा क्या कर सकते हैं, यही सोचना चाहिए। सबका भला हो।