कहने की जरूरत नहीं कि आत्महत्या करने वाले लोग जीवन से निराश हो चुके होते हैं। लेकिन पिछले दिनों एक ऐसे युवक गौतम से मुलाकात हुई जो आत्महत्या करने जा रहा था तभी लोगों ने उसे ट्रेन के सामने कूदने से बचा लिया। वह बार- बार कह रहा था कि उसे जीने में अब कोई दिलचस्पी नहीं है। अचानक एक सन्यासी ने उसके जीवन की धारा बदल दी। आज वह जीना चाहता है, बहुत खुश है और निराश लोगों के जीवन में प्रकाश लाना चाहता है। ट्रेन में उससे मुलाकात सुखकर थी। बाद में याद आया- उसका पता- ठिकाना ले लेना चाहिए था। उसने बस इतना ही बताया कि वह मुंबई में रहता है। कोलकाता में एक रिश्तेदार के घर बालीगंज में आया हुआ है। एक और रिश्तेदार दमदम में रहते हैं, उन्हीं से मिल कर आ रहा है। दमदम से सियालदह तक आत्महत्या पर चर्चा इसलिए हो सकी क्योंकि दमदम में सुबह- सुबह ही प्लेटफार्म नंबर एक पर एक युवक ने आत्महत्या कर ली थी। उसका सिर अलग औऱ धड़ अलग हो चुका था। दृश्य हृदयविदारक था। गौतम ने मुझसे कहा- बड़े काकू (बड़े चाचा जी) जीवन तो जीने के लिए है। इस आदमी ने आत्महत्या कर भारी गलती की है। मैंने भी आत्महत्या करनी चाही थी। लेकिन मुझे अब जीने की राह मिल गई है। आज गौतम एक छोटा सा व्यवसाय करता है और अपना परिवार चलाता है। चार साल पहले तक वह बेरोजगार था। नौकरियां ढूंढ़- ढूंढ़ कर थक चुका था। हर जगह निराशा, अपमान और तिरस्कार। घर के लोग भी उसकी तरफ से निराश हो चले थे। जिस लड़की से वह शादी करना चाहता था, उसने उससे नाता तोड़ कर किसी और से शादी कर ली। और भी कई घटनाएं हुईं, जिन्होंने उसके दिल पर कई घाव कर दिए। उसे लगा- चारो तरफ अंधकार है, एक ही उपाय है- मरना। गौतम भारी अवसाद में एक दिन तेज रफ्तार से आती ट्रेन के सामने कूदना ही चाहता था कि पीछे से एक तगड़े लेकिन बुजुर्ग व्यक्ति ने उसे पकड़ लिया औऱ डांटा- क्यों मरना चाहते हो? मरोगे तो ट्रेन लेट होगी, मैं आफिस नहीं पहुंच पाऊंगा। बाद में उससे पूछा गया कि कैसे उसे पता चला कि यह युवक आत्महत्या करने जा रहा है? तो उस बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा- कूदने के पहले जैसी मुद्रा होती है, वह ठीक उसी तरह खड़ा था। तो गौतम को बचा लिया गया। तभी उसकी मुलाकात एक सन्यासी से हुई। उन्होंने उससे कुछ प्रश्न किया।पहला सवाल था- क्यों निराश हो?गौतम- जीवन में कहीं कोई उम्मीद की किरण नहीं है। जीने से क्या फायदा?सन्यासी- तुम इस पृथ्वी पर क्यों आए?गौतम- धरती का सुख भोगने। सन्यासी- गलत। तुम पृथ्वी पर आए हो, ईश्वर को पाने के लिए। ईश्वर में ही असली सुख है। भौतिक वस्तुएं जुटाओ लेकिन उनका गुलाम मत बनो। गौतम- पास में फूटी कौड़ी नहीं है। अच्छी- अच्छी बातें तब अच्छी लगती हैं, जब पेट भरा हो औऱ जेब में पैसा हो।सन्यासी- तुमने हार क्यों मानी?गौतम- कहीं कोई नौकरी नहीं है। कुछ नहीं बचा अब मेरे जीवन में।सन्यासी- तुम किसी बड़ी कंपनी का माल लेकर उसे घूम- घूम कर बेच भी तो सकते हो? परिश्रम करने में बुराई क्या है? तुम्हारा मुख्य उद्देश्य है ईश्वर से दोस्ती करना। वह तुम्हारी परीक्षा ले रहा है। गौतम- मैंने क्या गलती की है? ईश्वर मेरे जैसे सीधे- साधे व्यक्ति की क्यों परीक्षा ले रहा है?सन्यासी- हो सकता है इस कठिनाई से ईश्वर तुम्हें कुछ सिखाना चाहते हों। गौतम- क्या मेरा जीवन पटरी पर आएगा?सन्यासी- बिल्कुल। तुम कोशिश तो करो। जीवन में कभी निराश नहीं होना चाहिए। कोशिश करते रहो। लगे रहो। १०० बार फेल हुए तो १००० बार और कोशिश करो। इसी में तो मजा है। हां, क्षेत्र वही चुनो, जहां कुछ कर सकने का माद्दा हो तुममे।यही पंक्तियां गौतम को लग गईं। वह फिनाइल बेचने लगा। आज उसके पास एक छोटी सी दुकान है।मैंने पूछा- ईश्वर को याद करते हो?गौतम बोला- ईश्वर ही मेरे जीवन के केंद्र हैं। मैं रोज सुबह- शाम पूजा औऱ ध्यान करता हूं। ऊपर वाला मेरी रक्षा करता है।
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