Thursday, January 15, 2009

मनुष्य न शरीर है, न मन

विनय बिहारी सिंह

एक बार रमण महर्षि के पास एक दुखी आदमी शांति की खोज में गया। इस आदमी की पत्नी की मृत्यु हो गई थी, जिसके साथ उसने १६- १७ साल अत्यंत प्रेम के साथ बिताए थे। वह व्यथित था। बेचैन था। उसने रमण महर्षि से मन शांत होने का उपाय पूछा। महर्षि मुस्कराए और बोले- जब तक हमारी देहात्मिका बुद्धि है, ऐसा दुख हमें सताता रहेगा। हम यह मान बैठे हैं कि हम शरीर हैं। जबकि सच्चाई यह है कि मनुष्य न शरीर है, न मन और न बुद्धि। हां शरीर मनुष्य का है, मन मनुष्य का है या बुद्धि मनुष्य की है लेकिन मनुष्य शरीर, मन या बुद्धि नहीं है। हम सब तो आत्मा हैं और गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि आत्मा अजर- अमर है। वह न जन्मती है और न मरती है। उन्होंने कहा- जब हम सोते हैं तो हम पूरी तरह अग्यान जैसी अवस्था में रहते हैं। उस समय सोया हुआ व्यक्ति नहीं कहता कि मैं सो रहा हूं। जगने के बाद ही कहता है कि हां, मैं गहरी नींद में सोया। मानो जगना जीवन है औऱ सोना मृत्यु।
उस आदमी से रमण महर्षि ने कहा- जब तुम्हारी पत्नी जीवित थी तो क्या वह तुम्हारे साथ आफिस जाती थी। उस आदमी ने कहा- नहीं। तब रमण महर्षि ने कहा- तुम्हारे साथ वह आफिस नहीं जाती थी, लेकिन तुम्हारे दिमाग में रहता था कि पत्नी घर पर है। अब तुम कहते हो- वह दुनिया में नहीं है। तो यह तुम्हारा अहं है। जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है। हर आदमी को कभी न कभी जाना है। मृत्यु अवश्यंभावी है। तुम्हारी पत्नी के रूप में उसे इतने ही दिन रहना था। तुम भी एक दिन इस दुनिया से चले जाओगे। दुनिया की यह रीति है। शोक क्यों? ईश्वर की शरण में जाओ। वहीं परम सांति और आनंद है।